Book Title: Pravrajya Yog Vidhi
Author(s): Maniprabhsagar
Publisher: Ratanmala Prakashan
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मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका ॥5॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं । वोपरि वज्रमयं पिधानं देहरक्षणे ||6|| महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता कथिता पूर्वसूरिभिः ॥ 7 ॥
"
यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा ।
तस्य न स्याद्भयं व्याधि - राधिश्चापि कदाचन ॥ 8 ॥
जयवीयराय बोलें।
खमा इच्छा. संदि. भग. मुहपत्ति पडिलेहुं । गुरू- पडिलेहेह । शिष्यइच्छं कहकर मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वांदणा दें।
खमा इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी काउसग्ग करावोजी । गुरू- करेह । शिष्य- इच्छं ।
खमा इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंधं अणुजाणावणी नंदीकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदीसूत्र संभलावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें।
गुरू भी खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुखंध अणुजाणावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी काउसग्ग करूँ इच्छं खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री दशवैकालिक सुयखंध अणुजाणावणी नंदीसूत्र कड्ढावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ. कहकर एक लोगस्स सागरवरगंभीरा तक काउसग्ग करें। प्रकट लोगस्स कहें।
खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी नंदी सूत्र संभलावोजी । गुरूसांभलो। गुरू भी खमा इच्छाकारेण संदि. भग. नंदीसूत्र कड्ढूं इच्छं ।
शिष्य खडे खडे कनिष्ठिका अंगुली में मुहपत्ति रखकर दोनों अंगुष्ठ के मध्य रजाहरण रखे और सिर झुका कर नंदी सूत्र सुने ।
तीन नवकार मंत्र बोलकर गुरू महाराज नंदीसूत्र सुनावे |
बृहत् नंदी सूत्र -
नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं नो उद्धिसिज्जति नो समुद्धिसिज्जंति नो अणुन्नविज्जति सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ । जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना योग विधि / 211
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