Book Title: Pravrajya Yog Vidhi
Author(s): Maniprabhsagar
Publisher: Ratanmala Prakashan

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Page 232
________________ पवेयणा विधि खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं। गुरू- पडिलेहेह। शिष्य- इच्छं। मुहपत्ति का प्रतिलेखन कर दो वांदणा दें। खमा. इच्छा. संदि. भग. पवेयणा पवेउंजी। गुरू- पवेयह। शिष्य- इच्छं। खमा. इच्छकारी भगवन् पसाय करी पच्चक्खाण करावोजी। गुरूकरावेमो। शिष्य- इच्छं। गुरू महाराज उन्हें उपवास तप का पच्चक्खाण करावें। खमा. इच्छकारी भगवन् पसायकरी मम दिग्बंधं करेह। गुरू- करेमो। शिष्य- इच्छं। शिष्य नवकार पूर्वक प्रदक्षिणा देकर आवें गुरू- नवकार। कोटिक गण. वज्र शाखा. चन्द्र कुल. खरतर बिरूद. महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी महाराज का वासक्षेप. गणनायक श्री सुखसागरजी महाराज का समुदाय. वर्तमान में आचार्य / गणाधीश....... ...............। उपाध्याय .........................., पू. ..................की निश्रा में। साक्षी साध्वीरत्न श्री....................म.। साक्षी श्रावकवर्य श्री........... ......... साक्षी सुश्राविका श्रीमती................. एवं सकल संघ समक्षे पू. ................... के शिष्य / शिष्या ............... (नूतन नाम बोलें) ........नाम नित्थारगपारगाहोह। सभी साधुओं, साध्वियों से वासक्षेप ग्रहण करे। प्रदक्षिणा देते समय श्रावक श्राविका उन्हें अक्षतों से बधाये। इस प्रकार नामकरण की क्रिया तीन बार करें। नूतन साधु । साध्वी गुरू महाराज को विधिवत् द्वादशावर्त वंदना करे। फिर नूतन साधु । साध्वी को सकल संघ विधिवत् वंदना करे। ___ शिष्य खमा. पूर्वक कहे- इच्छाकारेण धम्मोवएसं करेह। गुरू- सुणेह। गुरू महाराज प्रासंगिक प्रवचन दें। बाद में दिक्पालों का विसर्जन करने के बाद नंदी का विसर्जन करे। तत्पश्चात् जिनमंदिर जाकर विधिवत् चैत्यवंदन करे। बाद में ईशान कोण में बैठकर नवकार मंत्र की एक माला फेरे। बाद पच्चक्खाण पारने आदि की विधि करें। (इति बड़ी दीक्षा विधि) योग विधि / 225

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