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. आँसू आने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . विशेष- साध्वी वर्ग में अंतराय की स्थिति में उन्हें नित्य विधि ही करनी होती है। प्रातः प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना की विधि करने के बाद पवेयणा की क्रिया करानी होती है। अन्य विधियाँ प्रतिदिन की भाँति होती है। तीन या चार दिन बाद अध्ययन के उद्देश, समुद्देश आदि की विधि एक साथ करानी होती है।
इन कारणों से प्रायश्चित्त आता है
वमन हो जाय। मंदिर दर्शन करना भूल जाय। पच्चक्खाण पारना भूल जाय। आहार ग्रहण के बाद चैत्यवंदन करना भूल जाय। उग्घाडा पोरिसी पढानी भूल जाय। संथारा पोरिसी पढानी भूल जाय। प्रत्याख्यान से विरुद्ध आहार ग्रहण कर लिया हो। दिन में शयन किया हो। रूदन हो। रजोहरण, मुखवस्त्रिका की आड पडी हो। उपकरण गुम हुआ हो। मुट्ठिसहिय का पच्चक्खाण पारना भूल गया हो। विजातीय तिर्यंच का संघट्टा हो।
गौचरी से उठने के बाद मुँह में से अन्न का कण निकला हो। __ आहार परठा हो।
उल्लिखित प्रारंभ के सात कारणों से दिन बढता है, पर वर्तमान में प्रवृत्ति नहीं है। अभी इनके लिये उपवास का प्रायश्चित्त दिया जाता है। शेष कारणों के लिये आयंबिल. एकासणा, सज्झाय आदि का प्रायश्चित्त दिया जाता है।
योग विधि / 239