Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 4
________________ 9 भूमिका । यह श्री प्रवचनसार परमागमका तीसरा खंड है। इसके कर्ता स्वामी कुन्दकुंदाचार्य हैं जो मूलसंघके नायक य महान् प्रसिद्ध योगीश्वर होगए हैं। आप वि० सं० ४९ में अपना अस्तित्व रखते थे। इस तीसरे खण्डमें ९७ गाथाओंकी संस्कृतवृत्ति श्री जयसेनाचार्यने लिखी है जब कि दूसरे टीकाकार श्री अमृतचंद्राचायने केवल ७५ गाथाओंकी ही वृत्ति लिखी है। श्री अमृतचंद्र महाराजने स्त्रीको मोक्ष नहीं होसक्ती है इस प्रकरणकी गाथाएँ जो इसमें नं० ३० से ४० तक हैं उनकी वृत्ति नहीं दी है । संभव हो कि ये गाथाएं श्री कुंदकुंदस्वामी रचित न हों, इसीलिये अमृतचंद्रजीने छोड़ दी हों। श्री जयसेनाचार्यकी वृत्ति भी बहुत विस्तारपूर्ण है व अध्यात्मरससे भरी हुई है। हमने पहले गाथाका मूल अर्थ देकर फिर संस्कृत वृत्तिके अनुसार विशेषार्थ दिया है । फिर अपनी बुद्धि के अनुसार जो गाथाका भाव समझमें आया मो भावार्थमें लिखा है। यदि हमारे अज्ञान व प्रमादसे कहीं भूल हो तो पाठकगण क्षमा करेंगे व मुझे सूचित करनेकी कृपा करेंगे । हमने यथासम्भव ऐमी. , चेष्टा की है कि साधारण बुद्धिवाले भी इस महान शास्त्रके भावको समझकर लाभ उठा सकें। लाला भगवानदासजी इटावाने आर्थिक सहायता देकर जो ग्रन्थका प्रकाश कराया है व मित्रके पाठकोंको भेटमें अर्पण किया है उसके लिये वे सराहनाके योग्य हैं। रोहतक ... जिनवाणी भक्तफागुन वदी ४सं० १९८२४ ता०२-२-२६. ब्र० सीतलप्रसाद ।

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