Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika Author(s): Shitalprasad Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 7
________________ ४४ योग्य आहार विहारी साधुका स्वरूप ४४-४६ १६५ ४९ मांसके दोष .... .... .... ४७-४८ १७६ ४६ साधु आहार दूसरेको न देवे .... ४९ १७९ ४७ उत्सर्ग और अपवाद मार्ग परस्पर .... सहकारी हैं .... .... ५०-६१ १८० ४८ शास्त्रज्ञान एकाग्रताका कारण है .... ५२-५५ १९२ ४९ आगमज्ञान, तत्वार्थश्राद्वान और __ चारित्रकी एकता मोक्षमार्ग है .... ५६-५७ २०६ ६० आत्मज्ञान ही निश्चय मोक्षमार्ग है .... ५८-५९ २१५ ५१ द्रव्य और भावसंयमका स्वरूप .... ६०-६२ २२२ ५२ साम्यभाव ही साधुपना है .... ६३ २३२ १३ जो शुद्धात्मामें एकान नहीं वह ___ मोक्षका पात्र नहीं .... ६४-६५ २३६ ५४ शुभोपयोगी साधुका लक्षण व . उसके आस्रव होता है .... ६६-७० २४२ ५५ वैयावृत्त्य करते हुए संयमका घात ___योग्य नहीं है .... ७१ २६२ ५६ परोपकारी साधु उपकार कर सक्ता है ७२ २६४ ५. सानुयोगी वेनावृत्त्य कव करनी योग्य है ७३ २६८ ५८ साधु वैय्यावृत्त्यके निमित्त लौकिक जनोंसे भाषण कर सक्ते हैं .... ७४ २७१ ५९ वैयावृत्त्य श्रावत्रोंका मुख्य व साधुओंका गौण कर्तव्य है .... ७६ २७२Page Navigation
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