Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 6
________________ २२ ७ प्रकार प्रतिक्रमण ... ... २३ कायोत्सर्गक भेद ... २४ साधुको छेदके निमित्त बचाने चाहिये १३ ८९ २५ माधुके विहारके दिनोंका नियम ... २६ सायुको आत्मद्रव्यमें लीन होना योग्य है १४ ९४ २७ साधुको भोजनादिमें ममत्त्व न करना १५ ९७ २८ प्रमाद शुहात्माकी भावनाका निरोधक है १६ १०१ २९ हिंसा व अहिंसाका स्वरूप १०३ ३० प्रयत्नशील हिंसाका भागी नहीं है १७--१९ १०९ ३. प्रमादी सदा हिंसक है ... २० ११० ३२ परिग्रह बंधका कारण है ... २१ ११७ १३ बाह्य त्याग भावशुद्धि पर्वक करना योग्य है २२-२५ १२२ ३४ परिग्रहवान अशुद्ध भावधारी है ... २६ १२८ ३५ अपवाद मार्गमें उपकरण .... २७-२८ १३१ २६ उपकरण रखना अशक्यानुष्ठान है २९ १३५ ३७ स्त्रीको तदगव मोक्ष नहीं हो सक्ती ३०-४० १३७ ३८ श्वेताम्बर अन्थोंमें स्त्रीको उच्च पदका अभाव १५४ ३९ आर्यिकाओंका चारित्र ... .... १५९ ४. अपवाद मार्ग कथन ... .... ४१ १५७ ११ मुनि योग्य आहार विहारवान होता है. ४२ १६० ४९ साधु भोनन क्यों करते हैं ४३ पंद्रह प्रमाद साधु नहीं लगाते हैं ... ४३ १६३

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