Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 8
________________ ६० पात्रकी विशेषतासे शुभोपयोगीके फलकी विशेषता होती है ... ७६ २७७ . ६१ सुपात्र, कुपात्र, अपात्रका स्वरूप .... २८० ६२ कारणही विपरीततासे फलकी विपरीतता होती है ७७-७८ २८० -७८२८० ६३ अजैन साधुओंको स्वर्गलाभ .... .... २८६ ६४ विषय कषायाधीन गुरु नहीं होसक्ते .... ७९ २९० ६५ उत्तम पात्रका लक्षण .... .... ८०-८१ २९३ ६६ संघमें नए आनेवाले साधुकी परीक्षा व प्रतिष्ठा करनी योग्य है ८२-८४ २९८ ६७ श्रमणाभासका स्वरूप .... .... ८५ ३०६ ६८ सच्चे साधुको जो दोष लगाता है वह कोपी है ८६ ३०९ ६९ जो गुणहीन साधु गुणवान साधुओंसे विनय चाहे उसका दोष ८७ ७० गुणवानको गुणहीनकी संगति योग्य नहीं ८८ ३१६ ७१ लौकिक जनोंकी संगति नहीं करनी योग्य है ८९ ७२ अयोग्य साधुओंका स्वरूप ... .... ३२२ ७३ दयाका लक्षण.... .... ... ३२४ ७४ लौकिक साधु.... .... .... ३२५ ७६ उत्तम संगति योग्य है.... ३२८ ७६ संसारका स्वरूप .... ७७ मोक्षका स्वरूप .... .... ३३४ ७८ मोक्षका कारण तत्त्व ... .... ९९' । ३३७

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