Book Title: Pratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 14
________________ xii... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन आजकल अधिकांश विधि-विधानों की सत्ता विधिकारकों के हाथ में जा चुकी है। अपवादतः साधु-साध्वी न हो तो प्रतिष्ठा विधान हो सकता है परन्तु विधिकारकों की अनुपस्थिति में नहीं। ऐसी ही अनेक भ्रान्त मान्यताएँ जन मानस में स्थापित हो चुकी है। शास्त्रों में प्रतिष्ठा करवाने का अधिकार जहाँ मात्र आचार्य को था वहीं आज हर कोई साधु-साध्वी या गृहस्थ विधिकारक भी यह. विधान सम्पन्न करवा देते हैं। इसी प्रकार शास्त्रों में प्रतिष्ठाकारक, स्नात्रकार (विधिकारक ) गृहस्थ, शिल्पी आदि की योग्यताओं के संबंध में भी नहीवत ध्यान दिया जाता है। जैनाचार्यों ने प्रतिष्ठा सम्बन्धी अनेक कर्त्तव्यों का भी वर्णन प्रतिष्ठाकल्पों में किया है परन्तु आज इन सबसे हमारा ध्यान हटता जा रहा है अतः आज के समय में साध्वी सौम्यगुणाजी का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है। प्रतिष्ठा जैसे मुख्य विधान की विस्तृत चर्चा हमें सर्वप्रथम आचार्य पादलिप्तसूरि रचित निर्वाणकलिका नामक प्रतिष्ठाकल्प में मिलती है। यद्यपि इससे पूर्व भी कुछ ग्रन्थ उपलब्ध थे जिनका उल्लेख ग्रन्थकार ने किया है, परंतु आज उनका अस्तित्व नहीं देखा जाता। यह प्रतिष्ठा कल्प 5वीं शती की रचना माना जाता है। वर्तमान में मुख्य रूप से आठ प्रतिष्ठाकल्प उपलब्ध हैं किन्तु अधिकांश विधि-विधान गणि सकलचंद्रजी द्वारा रचित आठवें प्रतिष्ठा कल्प के आधार पर करवाए जाते हैं। वैदिक परम्परा में भी मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा करवाई जाती है । यद्यपि मंत्रोच्चार एवं विधि प्रक्रिया अलग हैं फिर भी एक दूसरे का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। साध्वी सौम्यगुणाजी द्वारा किया गया यह शोध कार्य प्रतिष्ठा जैसे महत्त्वपूर्ण विधान की सूक्ष्मता को समझने में एक सार्थक कदम होगा। प्रतिष्ठा एक बृहद् विधान है और इसमें बहुत से रहस्य समाहित हैं जिन तथ्यों पर विस्तृत कार्य किया जा सकता है। शोध समय की अल्पता के कारण साध्वीजी की योग्यता एवं इच्छा होने पर भी इसे विस्तृत स्वरूप नहीं दे पाई हैं। परन्तु आशा है भविष्य में वह अपनी अध्ययन यात्रा को गतिशील रखते हुए ऐसे ही अनछुए विषयों पर अपनी कलम चलाएंगी।

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