Book Title: Pratishtha Lekh Sangraha Part 02 Author(s): Vinaysagar Publisher: VinaysagarPage 11
________________ तीर्थ पुस्तक में सन् १९८८ में प्रकाशित हो चुके हैं। कुलपाक तीर्थ का इतिहास लिखते हुए वहाँ के प्राचीन एवं अर्वाचीन लेख भी लिए थे। वे कुलपाक तीर्थ माणिक्यदेव, ऋषभदेव पुस्तक में सन् १९९१ में प्रकाशित हुई है। समय-समय पर कुछ लेखों का और भी संग्रह किया था। वह खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास द्वितीय भाग - खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह में शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। द्वितीय भाग का प्रकाशन प्रतिष्ठा लेख संग्रह के द्वितीय भाग की पाण्डुलिपि भी मैंने उसी समय तैयार कर ली थी किन्तु यह द्वितीय भाग मेरी उपेक्षा के कारण ही प्रकाशित न हो सका। जो पचास वर्षों के पश्चात् अब प्रकाशित होने जा रहा है। प्रतिष्ठा लेख संग्रहः द्वितीय भाग में ७५७ लेखों का संग्रह है। ये समस्त लेख वि०सं० १०५४ से सम्वतानुक्रम से दिये गये हैं। संख्यांक के साथ ही यह निर्दिष्ट किया गया है कि यदि पाषाण की मूर्ति है तो केवल नाम विशेष दिया गया है, धातु की मूर्ति है तो नाम के साथ पंचतीर्थी, चतुर्विंशतिपट्ट, एकतीर्थी का उल्लेख किया गया है। शिला-लेखों के लिए शिलालेख, शिलापट्टप्रशस्ति और भित्ति-लेख के नाम से संकेत किया गया है। शिलालेख या मूर्ति वर्तमान में किस मन्दिर में विराजमान है, इसका टिप्पणी में संख्यांक के रूप में उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक में अन्वेषकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सात परिशिष्ट दिये गये हैं :परिशिष्ट १. संबंधित लेखों के आधुनिक प्राप्ति स्थान - नगर या गाँव का नाम और किस मंदिर में यह मूर्ति है, इसका उल्लेख करते हुए लेखांक दिया गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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