Book Title: Pratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 11
________________ श्रुत सौजन्य के सहभागी श्री ज्ञानचन्दजी कोठारी परिवार व्यक्ति का उन्नत आचार, श्रेष्ठ विचार और मृदु व्यवहार सभी दिलों पर अमिट छाप छोड़ देता है। व्यक्ति की यही प्रवृत्तियाँ उसे लोकप्रिय, सुखी एवं गुण समृद्ध भी बनाती है। कलकत्ता जैन समाज का ऐसा ही एक प्रभावी व्यक्तित्व था बीकानेर निवासी श्री ज्ञानचंदजी कोठारी का। पूज्य गुरुवर्या शशिप्रभा श्रीजी म.सा. के सदुपदेशों से प्रभावित होकर आपके जीवन की धारा ही बदल गई थी। जीवन के अन्तिम पड़ाव में आपको मात्र गरुवा श्री का ही ध्यान था। आपके परिवार वालों का मानना है कि हमारे परिवार में जो धर्म संस्कारों का पौधा दिखाई देता है उसका बीज तो ज्ञानचंदजी की मातु श्री लक्ष्मीबाई द्वारा डाला गया था परंतु उसमें खाद, पानी एवं रोशनी का कार्य पूज्य गुरुवर्या श्री ने किया। सेवाभावी श्री निर्मलजी कोठारी ने अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलकर परिवार की परम्परा को अक्षुण्ण बनाए रखा है। आपकी जन्म स्थली बीकानेर है परन्तु मुख्य कर्मभूमि कलकत्ता ही रही। मानव सेवा एवं समाज उत्थान में आपकी विशेष अभिरुचि है। J.I.T.O., जैन कल्याण संघ आदि संस्थाओं में आप नियमित रूप से सेवा प्रदान करते हैं। स्वाध्याय, प्रभु भक्ति, संत समागम आदि सद्प्रवृत्तियों में जुड़े रहने का सदा प्रयास रहता है। अध्ययन-अध्यापन, साधर्मिक सहयोग आदि कार्यों में आपका योगदान समाज में अनवरत रूप से रहा है। जीवन के सम-विषम मार्गों में निर्मलचन्दजी की अनन्य सहयोगिनी श्रीमती रेणुकाजी कोठारी संयमित एवं परिमित भाषी महिला है। जिनपूजा, सामायिक, स्वाध्याय आदि आराधनाओं का दृढ़ता के साथ पालन करती हैं। आपकी तीन पुत्रियों में भी आपके सद्गुणों का प्रतिबिम्ब स्पष्ट झलकता है। ___ निर्मलजी कोठारी अपने नाम के अनुसार छल एवं मल रहित जीवन के धारक हैं। संघ समाज में आपकी छवि एक ऐसे ईमानदार व्यक्ति के रूप में है जिसकी साख देने के लिए कोई भी मना नहीं करेगा। ज्ञानार्जन में आपकी विशेष

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