Book Title: Pratikraman
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 24
________________ प्रतिक्रमण ३३ प्रतिक्रमण हे उसका प्रतिक्रमण करना। अगला जनम तेरा उजागर हो जायेगा। डिसऑनेस्टी को, डिसऑनेस्टी जान ले और उसका पश्चाताप कर। पश्चाताप करनेवाला मनुष्य ऑनेस्ट है यह निश्चित है। अभी साझेदार के साथ मतभेद हो जाये, तो आपको तुरन्त मालूम हो जायेगा कि, यह जरूरत से ज्यादा बोलना हुआ, इसलिए तुरन्त उसके नाम का प्रतिक्रमण करना। हमारा प्रतिक्रमण कैश (नगद) पेमेन्ट होना चाहिए। यह बैन्क भी कैश कहलाता है और पेमेन्ट भी कैश कहलाता है। ऑफिस में परमीट (परवाना) लेने गये, मगर साहब ने नहीं दिया तब मन में होगा कि, 'साहब नालायक है, ऐसा है, वैसा है।' अब इसका फल क्या आयेगा यह मालूम नहीं है। इसलिए यह भाव बदल देना, प्रतिक्रमण कर डालना। इसे हम जागृति कहते हैं। इस संसार में अंतराय कैसे आता है यह आपको समझाता हूँ। आप जिस ऑफिस में नौकरी करते हैं, वहाँ आपके आसिस्टन्ट (सहायक) को कमअक्ल कहें, वह आपकी अक्ल पर अंतराय आया! बोलिए, अब इस अंतराय में सारा संसार फँस-फँसकर इस मनुष्य अवतार को व्यर्थ गँवाता है! आपको कोई राइट (अधिकार) ही नहीं है, सामनेवाले को कमअक्ल कहने का। आप ऐसा बोलेंगे अत: सामनेवाला भी उलटा बोलेगा, इसलिए उसको भी अंतराय आयेगा! बोलिए अब, इस अंतराय में से संसार कैसे छूट सकता है? किसी को आप नालायक कहेंगे तो आपकी लियाक़त पर अंतराय होता है ! आप इसके तुरन्त ही प्रतिक्रमण करें तो वह अंतराय आने से पहले धुल जाता है। प्रश्नकर्ता : नौकरी के फर्ज अदा करते समय मैंने बहुत कड़ाई से लोगों के अपमान किये थे, दुतकार दिया था। दादाश्री : उन सभी का प्रतिक्रमण करना होगा। उसमें आपका इरादा बुरा नहीं था, अपने खुद के लिए नहीं, सरकार के प्रति वह सिन्सियारीटी (वफ़ादारी) कहलाये। ८. 'ऐसे' टूटेगी शृंखला ऋणानुबंध की प्रश्नकर्ता : पूर्वजन्म के ऋणानुबंध से छूटने के लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : हमारा जिनके साथ पूर्व का ऋणानुबंध हो और वह हमें पसंद ही नहीं हो, उसके साथ सहवास अच्छा ही नहीं लगता हो और फिर भी सहवास में रहना पड़ता हो, अनिवार्य रूप से, तो क्या करना चाहिए? कि बाहर का व्यवहार उसके साथ जरूर से रखना चाहिए, पर भीतर उसके नाम के प्रतिक्रमण करने चाहिए। क्योंकि हमने पिछले जनम में अतिक्रमण किया था उसका यह परिणाम है। कोझिझ क्या किये थे? तब कहे, उसके साथ पूर्वभव में अतिक्रमण किया था। उस अतिक्रमण का इस अवतार में फल आया, इसलिए उसका प्रतिक्रमण करेंगे तो प्लस-माइनस (जोड़घटाव) हो जायेगा। अत: भीतर में आप उसकी क्षमा माँग लें। क्षमा माँगते रहो बार-बार कि मैंने जो-जो दोष किये हो उसकी माफ़ी चाहता है। किसी भी भगवान को साक्षी करके, तो सब खतम हो जायेगा। सहवास पसंद नहीं आने से बाद में क्या होता है? उसके प्रति दोषित दृष्टि से देखने से, किसी पुरूष को स्त्री पसंद नहीं होती तो बहुत दोषित नज़र आया करे, अत: तिरस्कार होगा। इस से डर लगेगा। जिसका हमें तिरस्कार होगा उसका हमें डर लगेगा। उसे देखते ही घबराहट होने लगे। अत: समझना कि यह तिरस्कार है। इसलिए तिरस्कार छोड़ने के लिए बारबार माफ़ी माँगते रहो, दो ही दिन में वह तिरस्कार बंद हो जायेगा। उसे मालूम नहीं हो किंतु आप भीतर बार-बार माफ़ी माँगा करें. उसके नाम की जिस के प्रति जो जो दोष किये हो, हे भगवान! मैं क्षमा चाहता हूँ। यह दोषों का परिणाम है, आपने किसी भी मनुष्य के प्रति जो जो दोष किये हो, तो भीतर आप माफ़ी माँग-माँग करें, भगवान के पास, तो सब धुल जायेगा। यह तो नाटक है। नाटक में बीबी-बच्चों को कायम के लिए खुद के बना लें तो क्या मुनासिब होगा? हाँ, नाटक में बोलें ऐसे बोलने में हर्ज

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