Book Title: Pratikraman
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 38
________________ प्रतिक्रमण ६२ प्रतिक्रमण मनुष्य संयोगानुसार चोरी करे, और मैं खुद देखू तो भी मैं उसे चोर नहीं कहूँगा, क्योंकि (यह) संयोगानुसार है। जगत् के लोग क्या कहते हैं कि जो पकड़ा गया उसे चोर कहते हैं। संयोगानुसार था या कायमी चोर था, ऐसा जगत् के लोग कुछ परवाह नहीं करते। मैं तो कायमी चोर को चोर कहता हूँ। और संजोगानुसार (हुए चोर) को मैं चोर नहीं कहता हूँ। अर्थात् मैं तो एक अभिप्राय बंधा जाये, फिर दूसरा अभिप्राय बदलता ही नहीं हूँ। किसी भी मनुष्य के लिए मैंने आज तक अभिप्राय बदला नहीं है। हम शुद्ध हुए और चन्दुभाई को शुद्ध करना यह हमारा फर्ज है। यह पुद्गल क्या कहता है कि भैया, हम शुद्ध ही थे। आपने भाव करके हमें बिगाड़ा और इस हालत तक हमें बिगाड़ा। वरना हमारे में लहू, पीब, हड्डियाँ कुछ नहीं था। हम शुद्ध थे, आपने हमें अशुद्ध किया। इसलिए अगर आपको मोक्ष में जाना हो तो आपके अकेले शुद्ध होने से गुज़ारा नहीं होगा। हमारी शुद्धि करोगे तो ही आपका छुटकारा होगा। १८. विषय विकार को जीते वह राजाओं का राजा प्रश्नकर्ता : एक बार विषय का बीज पड़ गया हो, तो वह रूपक में तो आयेगा ही न? दादाश्री : बीज पड़ ही जायेगा और वह रूपक में आयेगा किंतु जहाँ तक उसकी जड़े जमी नहीं, वहाँ तक कम-ज्यादा हो सकता है लेकिन मरने से पहले वह शुद्ध हो जायेगा। इसलिए हम विषय के दोषवालों से कहते हैं कि, विषय के दोष हुए हो, अन्य दोष हुए हो, तो तू इतवार को अनशन करना और सारा दिन यही सोच-विचार कर उसे बार-बार धोते रहना। ऐसे आज्ञापूर्वक करेगा न, इससे कम हो जायेगा। अभी केवल आँख का खयाल रखना। पहले तो बहुत नेकीवाले मनुष्य विषय-विकार के दोष होते ही आँखें फोड़ डालते थे। हमें आँखें नहीं फोड़नी है। वह मूर्खता है। हमें आँखें फिरा देनी है। ऐसा करते भी, देख लिया तो प्रतिक्रमण कर लेना। एक मिनट के लिए भी प्रतिक्रमण मत चूकना। खाने-पीने में उलटा हुआ होगा तो चलेगा। संसार का सबसे बड़ा रोग ही यह है। इसे लेकर ही संसार खड़ा रहा है। इसकी जड़ों पर संसार खड़ा है। यही उसकी जड़ है। हक़ का खाये तो मनुष्य में आयेगा, बिना हक़ का (हराम का) खाये तो जानवर में जायेगा। प्रश्नकर्ता : हमने हराम का तो खाया है। दादाश्री : खाया है तो प्रतिक्रमण कीजिए, अब भी भगवान बचायेंगे। अब भी देरासर (मंदिर) में जाकर पश्चाताप कीजिए। हराम का खाया हो तो अब भी पश्चाताप कीजिए, अभी जीवित हो। इस देह में हो वहाँ तक पश्चाताप कीजिए। प्रश्नकर्ता : एक डर लगा, अभी आपने कहा कि सत्तर प्रतिशत लोग वापस चार पैर में जानेवाले हैं तो अब भी हमारे पास अवकाश है कि नहीं? दादाश्री : नहीं, नहीं। अवकाश रहा नहीं है, इसलिए अब भी सावधानी बरतो कुछ... प्रश्नकर्ता : महात्माओं की बात करते हैं। दादाश्री : महात्मा, यदि मेरी आज्ञा में रहे तो उसका नाम इस दुनिया में कोई लेनेवाला नहीं है। अर्थात् लोगों से क्या कहता हूँ कि अब भी सावधान हो सकें तो हो जाइए। अब भी माफ़ी माँग लेंगे न, तो माफ़ी माँगने का रास्ता है। हमने किसी रिश्तेदार को, इतना लम्बा कागज़ लिखा हो, और अंदर हमने बहुत सारी गालियाँ लिखी हो, सारा खत केवल गालियों से ही भरा हो, और फिर नीचे लिखें कि आज वाइफ के साथ झगडा हो गया है,

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