Book Title: Pratikraman
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 55
________________ प्रतिक्रमण ९६ प्रतिक्रमण होता नहीं है। हम प्रतिक्रमण 'चन्दुभाई' के पास करवाते हैं। क्योंकि यह तो अक्रम, यहाँ तो सारा माल भरा हुआ। हम तो सामनेवाले के किस आत्मा की बात करते हैं? प्रतिक्रमण किस से करते हैं, वह जानते हो? प्रतिष्ठित आत्मा से नहीं करते, हम उसकी मूल शुद्धात्मा से करते हैं। यह तो शुद्धात्मा की हाजिरी में यह उसके साथ हुआ, उसके लिए हम प्रतिक्रमण करते हैं। अर्थात् उस शुद्धात्मा के पास हम क्षमा माँगते हैं। फिर उसके प्रतिष्ठित आत्मा से हमें लेना-देना नहीं है। प्रतिक्रमण भी अहंकार को ही करना है, पर चेतावनी किसकी? प्रज्ञा की। प्रज्ञा कहती है, 'अतिक्रमण क्यों किया? इसलिए प्रतिक्रमण कीजिए।' सूक्ष्म से सूक्ष्म दोष हमारी दृष्टि के बाहर नहीं जाता। सूक्ष्म से सूक्ष्म, अति अति सूक्ष्म दोष का हमें तुरन्त ही पता चल जायें! आपमें से किसी को पता नहीं चलेगा कि मेरा दोष हुआ है। क्योंकि दोष स्थूल नहीं है। प्रश्नकर्ता : आपको हमारे भी दोष नज़र आये? दादाश्री : सारे दोष नज़र आये। पर हमारी दृष्टि दोषों के प्रति नहीं होती। हमें तुरन्त ही उसका पता चल जाये। पर हमारी तो आपके शुद्धात्मा के प्रति ही दृष्टि होगी। हमारी आपके उदय कर्म के प्रति दृष्टि नहीं होती। हमें मालूम हो ही जायेगा, सभी के दोषो का हमें पता चल जायेगा। दोष नज़र आये लेकिन हमें भीतर उसका असर नहीं होता। हमारे पास जितने दंड के योग्य हैं उनको भी माफ़ी होगी. और माफ़ी भी सहज होगी। सामनेवाले को माफ़ी माँगनी नहीं होगी। जहाँ सहज माफ़ किया जाता है वहाँ वे लोग शुद्ध होते हैं। और जहाँ ऐसा कहा जाता है कि, 'साहिब, माफ़ करना।' वहीं अशुद्ध हुए होते हैं। सहज क्षमा होगी वहाँ तो बहुत शुद्धि हो जाये। जब तक हमें सहजता होगी, तब तक हमें प्रतिक्रमण नहीं होता। सहजता में आपको भी प्रतिक्रमण करने नहीं होंगे। सहजता में फर्क आया कि प्रतिक्रमण करना होगा। हमें आप जब भी देखेंगे तब सहजता में ही देखेंगे। जब देखे तब हम वही स्वभाव में नज़र आयेंगे। हमारी सहजता में फर्क नहीं आता। हम आपको पाँच आज्ञा देते हैं, क्यों कि ज्ञान तो दिया, पर वह गँवा बैठोगे। इसलिए ये पाँच आज्ञा में रहोगे तो मोक्ष में जाओगे। और छठवाँ क्या कहा? कि जहाँ अतिक्रमण हो जाये वहाँ प्रतिक्रमण कीजिए। आज्ञा पालना भूल जाये तो प्रतिक्रमण करे। भूल तो जायेंगे, मनुष्य है। लेकिन भूल गये उसका प्रतिक्रमण करे कि 'हे दादाजी, ये दो घंटे भूल गया, आपकी आज्ञा भूल गया। पर मुझे तो आज्ञा पालनी है। मुझे क्षमा करें।' तो पिछला सभी पास, सौ के सौ अंक पूरे। यह 'अक्रम विज्ञान' है। विज्ञान माने तुरन्त फल देनेवाला। करना पड़े ऐसा नहीं हो, उसका नाम 'विज्ञान' और करना पड़े ऐसा हो, उसका नाम 'ज्ञान'! विचारशील मनुष्य हो उसे ऐसा तो लगे न, कि हमने यह कुछ भी किया ही नहीं, और यह क्या है?! यह अक्रम विज्ञान की बलिहारी है। 'अक्रम', क्रम-ब्रम नहीं। जय सच्चिदानंद

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