Book Title: Pratikraman
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण दादाश्री : ये सब बहुत अतिक्रमण हो गये हैं इसलिए इनका सामूहिक प्रतिक्रमण करता हूँ। दोष बोलकर कि इस दोष के सामूहिक प्रतिक्रमण करता हूँ, कहना। अतः हल निकल आया। और फिर भी बाकी रहा तो उसे धो डालेंगे। आगे धो देंगे। लेकिन उस पर समय मत गँवाना। समय बिगाड़ने से तो सारा का सारा (प्रतिक्रमण) ही रह जायेगा। गुत्थियाँ उलझाने की जरूरत नहीं है। १४. निकाले कषाय की कोठरी में से प्रश्नकर्ता : किसी पर बहुत गुस्सा आया, फिर बोलकर बंद हो गये, बाद में यह जो बोलना हुआ इसलिए जी बार-बार जला करे तो उसमें एक से ज्यादा प्रतिक्रमण करने होंगे? दादाश्री : उसमें दो-तीन बार सच्चे दिल से करें और एकदम चौकस हुआ तो समाप्त हो गया। 'हे दादा भगवान! भयंकर बाधा आई। जबरदस्त क्रोध हुआ। सामनेवाले को कितना दुःख हुआ! उसकी माफ़ी माँगता हूँ, आपकी साक्षी में बहुत जबरदस्त माफ़ी माँगता हूँ।' प्रश्नकर्ता : किसी के साथ जरूरत से ज्यादा विवाद हो गया. तो उससे मन में अंतर बढ़ता जाता है। और किसी के साथ कभी एकाधदो बार विवाद हो जाये, तो उसमें दो-चार बार, ऐसे अधिक बार प्रतिक्रमण करने होंगे कि एक बार करने से सब का समाविष्ट हो जायेगा? दादाश्री : वह नाबूद हो कि नहीं हो, यह हमें नहीं देखना। हम तो अपने ही कपड़े धो कर स्वच्छ रहें। आपको मन में नहीं भाता फिर भी हो जाता है न? प्रश्नकर्ता : क्रोध हो जाता है। दादाश्री : इसलिए हमें उसे नहीं देखना, हमें प्रतिक्रमण करना है। हम कहें कि, 'चन्दुभाई, प्रतिक्रमण कीजिए।' फिर वे जैसे कपड़ा बिगड़ा होगा, ऐसा धो डालेंगे! आप बहुत दुविधा में नहीं पड़ना। वरना हमारा फिर से बिगड़ेगा। प्रश्नकर्ता : अब निंदा की, तब भले उसे जागृति नहीं होती, निंदा हुई कि गुस्सा आया उस समय निंदा हो जाती है। दादाश्री : उसे ही कषाय कहते हैं। कषाय हुआ माने दूसरे के अंकुश में आ गया। उस समय वह बोले, परंतु फिर भी वह जानता हो कि, यह गलत हो रहा है। कभी मालूम हो और कभी बिलकुल ही मालूम नहीं हो, ऐसे ही चला जाये। फिर थोड़ी देर बाद मालूम हो। अर्थात् हुआ उस घड़ी 'जानता' था। प्रश्नकर्ता : हमारे ऑफिस में तीन-चार सेक्रेटरी हैं। उन्हें कहें कि ऐसे करना है, एक बार, दो बार, चार बार, पाँच बार कहने पर भी वही की वही गलती करते रहें। तब फिर गुस्सा आये, तो क्या करे उसका? दादाश्री : आप तो शुद्धात्मा हो गये हैं। अब आपको तो गुस्सा कहाँ आता है? गुस्सा तो चन्दुलाल को आयेगा। उस चन्दुलाल से फिर हम कहें, अब तो दादाजी मिलें हैं, जरा गुस्सा कम कीजिए न! प्रश्नकर्ता : लेकिन उन सेक्रेटरियों में कुछ इम्प्रुव (सुधार) नहीं होता। तो उनका क्या करें? सेक्रेटरी से कुछ कहना तो पड़ेगा न, वरना वे तो वैसी की वैसी भूल किया करेंगी, वे काम बराबर नहीं करतीं। दादाश्री : वह तो हम 'चन्दुभाई से' कहें, कि उनको डाँटिए, जरा समभाव से निकाल करके डाँटिए। यूँ ही नाटयात्मक रूप से डाँटना कि, दादाश्री : जितना हो सके उतना करना और अंत में सामुहिक कर देना। बहुत सारे प्रतिक्रमण करने इकट्ठे हो जायें तो सामुहिक प्रतिक्रमण करना कि इन सभी कर्मों के प्रतिक्रमण मुझ से अलग अलग नहीं होते। इन सभी का साथ में प्रतिक्रमण करता हूँ। हमें दादा भगवान से कह देना, वह पहुँच गया। प्रश्नकर्ता : हम सामनेवाले पर क्रोध करें फिर तुरन्त हम प्रतिक्रमण कर लें, फिर भी हमारे क्रोध का असर सामनेवाले मनुष्य पर से तुरन्त तो नाबूद नहीं होता न?

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57