Book Title: Pratikraman
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण प्रश्नकर्ता : आपने सबेरे 'चाय' पीते समय कहा कि हमने प्रत्याख्यान करने के बाद चाय पी है। दादाश्री : हाँ, वैसे 'चाय' तो मैं पीता नहीं हूँ, फिर भी पीने के संयोग आ मिलते हैं और अनिवार्य रूप से खड़ा होता है। तब क्या करना पड़ता है? यदि प्रत्याख्यान किये बिना जो पीलूँ तो 'वह' आ चिपकेगी। इसलिए तेल लगाकर रंगवाला पानी उँडेलना। हाँ, हम प्रत्याख्यानरूपी तेल लगायें, फिर हरे रंगवाला पानी उँडेले परंतु भीतर चिपकता नहीं। इसलिए प्रत्याख्यान करने के पश्चात् मैंने चाय पी! यह इतना समझने जैसा है। प्रत्याख्यान करके कीजिए यह सब। समझ में आया न? प्रतिक्रमण तो जब अतिक्रमण हो तब कीजिए। चाय पीनी पड़े। वह अतिक्रमण नहीं कहलाता। वह तो प्रत्याख्यान नहीं करोगे तो, तेल नहीं लगाने पर थोड़ा चिपक जायेगा। अब तेल लगाकर ही करना सब! १२. छूटे व्यसन, ज्ञानी के कहे अनुसार प्रश्नकर्ता : मुझे सिगरेट पीने की बुरी आदत पड़ गई है। दादाश्री : तो उसके बारे में 'तू' ऐसा रखना, कि यह गलत है, बुरी चीज़ है, ऐसा। और यदि कोई कहे कि सिगरेट क्यों पीते हो? तो उसकी तरफदारी मत करना। बुरा है, ऐसा कहना। या तो यह मेरी कमजोरी है, ऐसा कहना तो किसी दिन छूटेगी वरना वह नहीं छूटेगी। हम भी प्रतिक्रमण करते हैं न, अभिप्राय से मुक्त होना ही चाहिए। अभिप्राय रह जाने में हर्ज है। प्रतिक्रमण करे तो वह मनुष्य उत्तम से उत्तम वस्तु पा गया। अर्थात् यह टेक्निकली है। सायन्टिफिकली उसमें जरूरत नहीं रहती लेकिन टेक्निकली जरूरत है। प्रश्नकर्ता : सायन्टिफिकली कैसे? दादाश्री : सायन्टिफिकली फिर उसका वह डिस्चार्ज है, फिर उसे जरूरत ही क्या है?! क्योंकि आप अलग हैं और वह अलग है। इतनी सारी शक्तियाँ नहीं हैं उन लोगों की! प्रतिक्रमण नहीं करने से वह अभिप्राय रह जाता है। और आपने प्रतिक्रमण किया इसलिए अभिप्राय से अलग हुए, यह बात चौकस है न?! क्योंकि जितना अभिप्राय रहेगा. उतना मन रहेगा। क्योंकि मन अभिप्राय से बंधा हुआ है। हमने क्या कहा कि अभी व्यसनी हो गया है उसका मुझे विरोध नहीं है, पर जो व्यसन हुआ हो, उसका भगवान से प्रतिक्रमण करना कि हे भगवान! यह शराब नहीं पीनी चाहिए. फिर भी पीता हूँ। उसकी माफ़ी माँगता हूँ। यह फिर से नहीं पीने की शक्ति देना। इतना करना भैया। तब लोग विरोध उठाते हैं कि तू शराब क्यों पीता है? अरे, तू उसे ऐसा करके ज्यादा बिगाड़ता है। उसका अहित कर रहा है। मैंने क्या कहा, तू कितना भी बड़ा गुनाह करके आया हो, तो इस तरह प्रतिक्रमण करना। हमें अशाता कम होगी। देखिए न, हमें महीना भर कैसा रहा कि दादाजी को एक्सिडन्ट का समय आया। फिर जो हुआ, मानों दीया बुझनेवाला हो ऐसा हो गया था। प्रश्नकर्ता : ऐसा कुछ होनेवाला नहीं है, दादाजी। दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं, 'हीराबा' (दादाजी की धर्मपत्नी) गयीं तो, 'यह' (ए.एम.पटेल) नहीं जानेवाले? वह तो कौन-सा वेदनीय कर्म आया? प्रश्नकर्ता : अशाता वेदनीय। दादाश्री : लोग समझते हैं कि हमें वेदनीय है, लेकिन हमें वेदनीय छूए नहीं, तीर्थंकरों को भी छूए नहीं। हमें हीराबा के जाने का खेद नहीं है। हमें असर ही नहीं होता कुछ, लोगों को ऐसा लगे कि हमें वेदनीय आया, अशाता वेदनीय आया। किंतु हमें तो एक मिनट, एक सेकन्ड भी अशाता छुई नहीं है, ये बीस साल से! और यही विज्ञान मैंने आपको दिया

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57