Book Title: Pratham Karmagranth Karmavipak
Author(s): Harshagunashreeji
Publisher: Omkar Sahitya Nidhi

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Page 330
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जस्सुदया होइ जीए, हास रई अरइ सोग भय कुच्छा । सनिमित्तमन्नहा वा, तं इह हासाइ मोहणीयं ॥ २१ ॥ पुरिसित्थि-तदुभयं पइ, अहिलासो जव्वसा हवइ सो उ । थी-नर-नपुवेउदओ, फुफुम-तण-नगरदाहसमो ॥२२॥ सुर-नर-तिरि-नरयाऊ, हडिसरिसं नामकम्म चित्तिसमं । बायाल-तिनवइविहं, तिउत्तरसयं च सत्तट्ठी ॥ २३ ॥ गइ-जाइ-तणु-उवंगा, बंधण-संघायणाणि संघयणा । संठाण-वण्ण-गंध-रस-फास-अणुपुव्वि-विहगगई ॥२४॥ पिंडपयडित्ति चउदस, परघा-ऊसास आयवुजोअं। अगुरुलहु तित्थ निमिणो-वधायमिअ अट्ठ पत्तेआ ॥२५॥ तस- बायर-पज्जत्तं, पत्तेय-थिरं सुभं च सुभगं च । सुसराइज्जजसं, तसदसगं थावरदसं तु इमं ॥२६ ॥ थावर-सुहुम-अपज्जं, साहारण-अथिर-असुभ-दुभगाणि । दुस्सर-णाइजा जस-मिअ, नामे सेयरा वीसं ॥ २७ ॥ तसचउ-थिरछक्कं अथिरछक्क सुहुमतिग-थावरचउक्कं । सुभगतिगाइविभासा, तयाइसंखाहिं पयडीहिं ॥२८॥ वन्नचउ-अगुरुलहुचउ, तसाइ-दु-ति-चउर-छक्कमिच्चाई। इअ अन्नावि विभासा, तयाइसंखाहिं पयडीहिं ।। २९ ।। गइयाईण उ कमसो, चउ-पण-पण-ति पण-पंच-छ-छक्कं । पण-दुग-पण-ट्ठ-चउ-दुग-इअ उत्तरभेअ पणसट्ठी ॥३०॥ ૨૮૧ For Private and Personal Use Only

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