Book Title: Pratham Karmagranth Karmavipak
Author(s): Harshagunashreeji
Publisher: Omkar Sahitya Nidhi

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Page 332
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरहिदुरही रसा पण, तित्त-कडु-कसाय-अंबिला-महुरा । फासा-गुरु लहु-मिउ-खर-सी-उण्ह-सिणिद्ध-रुक्खट्ठा ॥४१॥ नील-कसिणं-दुग्गंधं, तित्तं कडुअं गुरुं खरं रुक्खं । सीअंच असुहनवगं, इक्कारसगं सुभं सेसं ॥ ४२ ॥ चउह-गइव्वणुपुव्वी, गइ-पुव्वीदुर्ग, तिगं नियाउजुअं पुव्वी उदओ वक्के, सुह-असुह-वसुट्ट-विहगगई ॥४३॥ परघाउदया पाणी, परेसिं बलिणंपि होइ दुद्धरिसो । ऊससणलद्धिजुत्तो, हवेइ ऊसासनामवसा ॥४४॥ रवि-बिंबे उ जीअंगं, ताव-जुअं आयवाउ, न उ जलणे । जमुसिण-फासस्स तहिं, लोहिअवण्णस्स उदउत्ति ॥ ४५॥ अणुसिणपयासरुवं, जीअंगमुजोअए इहुजोआ । जइदेवुत्तरविक्किअ-जोइसखज्जोअमाइव्व ॥ ४६॥ "अंगं न गुरु न लहुअं, जायइ जीवस्स अगुरुलहु उदया । तित्थेण तिहुअणस्स वि, पुज्जो से उदओ केवलिणो ॥४७॥ अंगोवंगनियमणं, निम्माणं कुणइ सुत्तहारसमं । उवघाया उवहम्मइ, सतणुवयवलंबिगाईहिं ॥४८॥ बि-ति-चउ-पणिंदिअ तसा, बायरओ बायरा जीया थूला । निय-निय-पज्जत्तिजुआ, पज्जत्ता लद्धिकरणेहिं ॥ ४९ ॥ पत्तेअतणू पत्ते उदएणं दंत-अट्ठिमाइ थिरं । नाभुवरि सिराइ सुहं, सुभगाओ सव्वजणइट्ठो ॥५०॥ सुसरा महुरसुहझुणी, आइज्जा सव्वलोअगिज्झवओ। जसओ जसकित्तीओ, थावरदसगं विवज्जत्थं ॥५१॥ २८3 For Private and Personal Use Only

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