Book Title: Prashnottar Ratnamala
Author(s): Vimalacharya, Devendrasuri,
Publisher: Divya Darshan Trust
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मङ्गलम्
।। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ।।
॥ श्री जिनाय नमः ।। ॥ श्री विजय-प्रेम-भुवनभानु-जयघोष-धर्मजित्-जयशेखर-वरबोधि-सूरिभ्यो नमः ॥ ॥ अथ श्रीप्रश्नोत्तररत्नमाला सटीका प्रारभ्यते ॥
__ (मूलकर्ता-श्रीविमलाचार्यः, टीकाकारः श्रीदेवेन्द्रसूरिः) श्रीनाभिभूर्जिनवरः कुशलाय वः स्या-द्यस्यांसयोरुपरि कुंतलभारदंभात् ।। भव्यांगिनां भवसमुद्भवतापशांत्यै। र कादंबिनी किमु समुन्नतिमाततान ||१|| द्वाविंशतिस्तीर्थकृतोऽजिताद्याः । पाावसाना ददतु श्रियं वः ।।
यन्नाममंत्रस्मृतिमात्रतोऽपि । प्रयाति पापाहिभयं भियेव ।।२।। चरमतीर्थकरोऽस्तु सदा मुदे । यदवदातकदंबक* मंजसा ।। श्रवणसंपुटमध्यमुपागतं । वद तनोति न कस्य चमत्कृतिम् ।।३।। श्रीगौतमस्तान्मम लब्धिसिद्ध्यै । यः * • केवलज्ञानपयोधिपुत्र्या ।। स्वयं वियुक्तोऽपि परं परेषा-मेतत्प्रदोऽहो महतां प्रभावः ।।४। विश्वप्रशस्य- हाँ * गुणरत्नसमुद्ररुद्र-पल्लीयगच्छगगनांगणशीतभासः ।। चारित्रपात्रमतिमात्रशमैकसत्रं । श्रीसंघपूर्वतिलका गुरवो * * जयन्ति ।।५।। तत्पट्टांभोजतिग्मांशुः । श्रीदेवेंद्रमुनीश्वरः ।। भोलाखेताभिधभ्रातृ-युगेनात्यर्थमर्थितः ।।६।।
प्रश्नोत्तररत्नमालां । विमलाचार्यनिर्मिताम् ।। विवृणोति सुदृष्टांतै-ह्युपकारी सतां श्रमः ।।७।। युग्मम् ।।
प्रश्नो. सटीका १॥
ki.w

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