Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir G प्रश्नव्याकरणसूत्रकी विषयानुक्रमणिका अनुक्रमांक विषय पृष्ठांक १ मङ्गलाचरण २ अवतरणिका ३-१३ प्रथम अध्ययन-प्रथम भाग ३ आस्रव और संवर के लक्षणों का निरूपण १३-१८ ४ पहला अधर्मद्वार का निरूपण १९-२६ ५ " मृषावादरूप" दूसरा अधर्मद्वार का निरूपण २७-३५ ६ " यथाकृत् " नामके तीसरा अधर्मद्वार का निरूपण ७ स्थलचर चतुष्पद प्राणीयों का निरूपण ४०-४२ ८ " उरः परिसर्प" के भेदों का निरूपण ४३-४४ ९ भुजपरिसर्प के भेदों का निरूपण ४५-१६ १० खेचर जीवों का निरूपण ४७-५० ११ प्राणियों के वधके प्रकार का निरूपण ४१-५३ १२ चतुरिद्रिय जीवोंकी हिंसा करने वालोंके प्रयोजनका निरूपण ५४-६२ १३ पृथिवीकाय जीवों के हिंसा के कारण का निरूपण ६३-६७ १४ अपकाय जीवों की हिंसा करने के प्रयोजन का निरूपण ६८१५ 'वायुकाय ' जीवों की हिंसा करनेके प्रयोजनका निरूपण६ ९-७० १६ 'वनस्पतिकाय' जीवोंकी हिंसा करने के प्रयोजनका निरूपण ७०-७४ स्थावरादि जीवों को कैसे २ भावों से युक्त होकर हिंसक जन मारते हैं उनका निरूपण ७४-८४ १८ जातिनिर्देशपूर्वक मंदबुद्धि वाले लोक कौन २ जीवों को मारते है उनका निरूपण ८५-८६ १९ कौन २ जीव पाप करते है उनका निरूपण २० जैसे २ कर्म करते है वैसा ही फल प्राप्त होनेका निरूपण ९१-९६ २१ नरक में उत्पत्ति के अनन्तर वहां के दुःखानुभवका निरूपण ९७-१०४ २२ पापि जीव नरकों में कैसी र वेदना को कितने काल भोगते है उनका निरूपण १०५-१०६ For Private And Personal Use Only

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