Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ ९८ विषय-सूची] प्रशमरतिप्रकरण विषय पृष्ठांक | विषय पृष्ठांक साधुको ग्रहण करने योग्य क्या है ? और छोड़ने सम्यक्ज्ञानकी प्राप्तिकी दुर्लभता ११२ योग्य क्या है ? ९२ , दर्शन , , ११२ इसीका स्पष्ट विवेचन ९२ , चारित्र " , ११३ भोजनके बारेमें , ९३ ९-नवम अधिकार-धर्म- कारिका १६७-१८१ कालादिकी अपेक्षासे ग्रहण किया भोजन अजीर्ण क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि दश धर्मोंका संक्षिप्त आदि रोग पैदा नहीं करता स्वरूप ११५ भोजन, पात्र वगैरह ग्रहण करनेवाला साधु अपरि- क्षमाधर्मका वर्णन ग्रही कैसे हो सकता है ? इसका समाधान मादेवधर्म ,, ११६ उसी निष्परिहताका स्पष्ट कथन आर्जवधर्म ,, ११७ शौचधर्म , ११८ दोषोंसे भरे हुए लोकमें रहकर और उसके साथ संयमधर्म , ११८ सम्बन्ध रखकर साधु दोषोंसे लिस क्यों त्यागधर्म , ११९ नहीं होता? इस शंकाका समाधान सत्यधर्म , ११९ दूसरा दृष्टान्त तपधर्म , १२० निर्ग्रन्थका स्वरूप आभ्यन्तरतप, १२१ कल्प्य (ग्राह्य ) और अकल्प्य (अग्राह्य )का स्वरूप ९८ ब्रह्मचर्यधर्म ,, १२३ इसी बातकी स्पष्टता - ९९ आकिञ्चन्यधर्म , १२३ वस्तुएँ कब कल्प्य होती हैं ? और कब अकल्प्य ? १०० धर्मका फल १२४ अनेकान्तवादके अनुसार कल्प्य अकल्प्यकी विधि जिस रीतिसे वैराग्यमें स्थिरता हो, वैसा यत्न करना चाहिए १२५ बतलाकर मन, वचन, काय योगको वशमें करनेका संक्षिप्त कथन २०१०-दशम अधिकार-धर्म-कथा-का०१८२-१८८ इन्द्रियोंके वश करनेका विवेचन चार प्रकारकी धर्म-कथा आक्षेपणी, विक्षेपणी, अनित्य अशरण आदि १२ भावनाओंका संक्षिप्त संवेदनी और निवेदनी कथाका स्वरूप १२६ - वर्णन | चार प्रकारकी विकथा-चौरकथा, स्त्रीकथा, आत्मकथा अनित्यभावनाका स्वरूप १०४ और देशकथाको त्यागना चाहिए १२७ अशरणं " " १०४ विशुद्ध ध्यानका कथन १२८ एकत्व " १२९ " १०५ | शास्त्र शब्दकी व्युत्पत्ति अन्यत्व , १०६ शास्त्रका स्वरूप अशुचित्व, १०६ सर्वज्ञदेवके वचन १३१ संसार ११-एकादश अधिकार --जीवादि नवतत्त्वआस्रव " १०८ कारिका १८९-१९३ १०८ अन्य शास्त्रोंमें सात पदार्थ बतलाये हैं। इसमें लोकभावना , ११० ९ क्यों कहे ? स्वाख्यात, जीवोंके भेद १३२ दुर्लभबोधि , १११ ' संसारीजीवोंके भेद १३० १०७ संवर निर्जरा " , १०९ १३२

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 242