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विषय-सूची]
प्रशमरतिप्रकरण विषय पृष्ठांक | विषय
पृष्ठांक साधुको ग्रहण करने योग्य क्या है ? और छोड़ने सम्यक्ज्ञानकी प्राप्तिकी दुर्लभता
११२ योग्य क्या है ? ९२ , दर्शन , ,
११२ इसीका स्पष्ट विवेचन ९२ , चारित्र " ,
११३ भोजनके बारेमें ,
९३ ९-नवम अधिकार-धर्म- कारिका १६७-१८१ कालादिकी अपेक्षासे ग्रहण किया भोजन अजीर्ण
क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि दश धर्मोंका संक्षिप्त आदि रोग पैदा नहीं करता
स्वरूप
११५ भोजन, पात्र वगैरह ग्रहण करनेवाला साधु अपरि- क्षमाधर्मका वर्णन ग्रही कैसे हो सकता है ? इसका समाधान मादेवधर्म ,,
११६ उसी निष्परिहताका स्पष्ट कथन
आर्जवधर्म ,,
११७ शौचधर्म ,
११८ दोषोंसे भरे हुए लोकमें रहकर और उसके साथ
संयमधर्म ,
११८ सम्बन्ध रखकर साधु दोषोंसे लिस क्यों त्यागधर्म ,
११९ नहीं होता? इस शंकाका समाधान सत्यधर्म ,
११९ दूसरा दृष्टान्त
तपधर्म ,
१२० निर्ग्रन्थका स्वरूप
आभ्यन्तरतप,
१२१ कल्प्य (ग्राह्य ) और अकल्प्य (अग्राह्य )का स्वरूप ९८ ब्रह्मचर्यधर्म ,,
१२३ इसी बातकी स्पष्टता - ९९ आकिञ्चन्यधर्म ,
१२३ वस्तुएँ कब कल्प्य होती हैं ? और कब अकल्प्य ? १००
धर्मका फल
१२४ अनेकान्तवादके अनुसार कल्प्य अकल्प्यकी विधि
जिस रीतिसे वैराग्यमें स्थिरता हो, वैसा यत्न करना चाहिए
१२५ बतलाकर मन, वचन, काय योगको वशमें करनेका संक्षिप्त कथन
२०१०-दशम अधिकार-धर्म-कथा-का०१८२-१८८ इन्द्रियोंके वश करनेका विवेचन
चार प्रकारकी धर्म-कथा आक्षेपणी, विक्षेपणी, अनित्य अशरण आदि १२ भावनाओंका संक्षिप्त
संवेदनी और निवेदनी कथाका स्वरूप १२६ - वर्णन
| चार प्रकारकी विकथा-चौरकथा, स्त्रीकथा, आत्मकथा अनित्यभावनाका स्वरूप
१०४ और देशकथाको त्यागना चाहिए
१२७ अशरणं " " १०४ विशुद्ध ध्यानका कथन
१२८ एकत्व "
१२९ "
१०५ | शास्त्र शब्दकी व्युत्पत्ति अन्यत्व ,
१०६ शास्त्रका स्वरूप अशुचित्व, १०६ सर्वज्ञदेवके वचन
१३१ संसार
११-एकादश अधिकार --जीवादि नवतत्त्वआस्रव "
१०८
कारिका १८९-१९३ १०८
अन्य शास्त्रोंमें सात पदार्थ बतलाये हैं। इसमें लोकभावना ,
११०
९ क्यों कहे ? स्वाख्यात,
जीवोंके भेद
१३२ दुर्लभबोधि ,
१११ ' संसारीजीवोंके भेद
१३०
१०७
संवर निर्जरा
" ,
१०९
१३२