Book Title: Prashamrati Prakaranam Author(s): Rajkumar Jain Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal View full book textPage 5
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला [विषय-सूची विषय पृष्ठांक विषय पृष्ठांक मनुष्य-पर्यायकी दुर्लभता __ ४५ देश, कुल, शरीर, ज्ञान, आयु, बल, भोग, विभू" "भी निईन्द्र नहीं है, हित क्या है? ४६ ' तिकी विशमता देखकर संसारमें कैसे रति अनेक गुणोंके होनेपर भी पुरुषोंका विनय ही प्रधान होती है ? भूषण है वैराग्यके निमित्त शास्त्रके सभी आरंभ गुरूके आधीन हैं, जो अपना शुभ परिणामोंके स्थितिके लिए राग-द्वेषका त्याग हित चाहता है, उसे गुरूकी सेवामें तत्पर और इन्द्रियोंको शान्त करनेका प्रयत्न करना रहना चाहिए चाहिए गुरू उपदेश देते हों तो अपनेको पुण्यवान् समझे ७-सप्तम अधिकार-आचार-कारिका १०२-१४५ कि गुरूका मुझपर इतना अनुग्रह है ४९ विषय अनिष्ट क्यों हैं ? ७२ हितकारी उपदेशके द्वारा शिष्योंका उपकार करने- विषय-भोगसे मनुष्यको थोड़ा बहुत सुख होता है। वाले भाचार्यका शिष्यको क्या प्रत्युपकार अतः विषय उपकारक हैं, इसका उत्तर करना चाहिए ? दूसरा उदाहरण परम्परासे विनयका फल मोक्ष है संसार-भ्रमणसे भयभीत भव्यजनोंको आचारका अविनयी मनुष्योंको क्या फल भोगना पड़ता है ? ५२ | अनुशीलन कर उसकी रक्षा करना चाहिए . ७५ उसी संकटका खुलासा ५२ | आचारके ५ भेदोंका संक्षिप्त वर्णन इसी बातके समर्थनमें दृष्टान्त | आचारांगके प्रथम श्रुतस्कंधों ९ अध्ययन हैं, ६-षष्ठ अधिकार-आठमद- कारिका ८०-१०१ उनके आधारसे आचारके ९ भेदोंका दृष्टान्तको दाष्टान्तमें घटाना संक्षिप्त वर्णन संसार-भ्रमण करते जीवकी कोई जाति सर्वदा नहीं द्वितीय श्रुतस्कन्धकी प्रथम चूलिकाके अधिकारोंका वर्णन सप्त सप्तकी द्वितीय चूलिकाके अधिकारोंका वर्णन ७९ इसी बातकी स्पष्टता जिस साधुका मन आचारमें रम जाता है, उस साधुको कुलमदको दूर करनेका उपदेश कभी भी मुक्तिकी बाधक बातें उत्पन्न नहीं होती ८१ रूपमदको बलके मदको विषय-सुखकी अभिलाषा करना व्यर्थ है " " लाभके मदको ८-अष्टम अधिकार--भावना- कारिका १४९-१६६ बुद्धिके मदको , " प्रशम-सुख प्राप्तिका उपाय किसीको प्रिय होनेका मद न करना चाहिए सरागी इष्टवियोग अनिष्ट योगसे दुःखी होता है, श्रुतका मद न करना चाहिए वीतरागीको वह दुःख छूता भी नहीं श्रुतमद करनेवाले स्थूलभद्र मुनिकी कथा टिप्पणीमें ६६ | विषय-सुखसे प्रशमजन्य सुखकी उत्कृष्टता जातिमदसे उन्मत्त हुआ मनुष्य इसलोकमें प्रशम-सुखका पुनः खुलासा पिशाचकी तरह दुःखी होता है। | लोककी चिन्ता छोड़कर साधु अपना भरण-पोषण मानकषायी भी दुःखी होता है। कैसे करेगा ? इस शंकाका समाधान पर-निन्दा क्यों छोड़ना चाहिए? लोक-वार्ता रखने में दूसरा कारण कर्मोदयके कारण ही नीच वगैरह जातियोंमें जन्म ,, कल्याणकारीपना होता है ___६९' दोष और गुणकी शिक्षा लोकसे ही लेनी चाहिए ९१ ७६ ७८ रहती ६३ ८ ६८Page Navigation
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