Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 9
________________ प्रकाशकका निवेदन। SIN श्रीमदुमास्वातिका सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र' (मोक्षशास्त्र) रा.चं. जैनशास्त्रमाला बहुत पहले प्रकट कर चुकी है, अब उनकी यह दूसरी सुन्दर रचना प्रशमरतिप्रकरणके प्रकाशित करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है। __इस ग्रंथकी भी दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंमें मान्यता है । इसका उल्लेख धवलाटीकामें श्रीवीरसेनाचार्यने किया है। इस ग्रंथपर दो संस्कृत टीकायें श्वेताम्बराचार्योकृत अभीतक मुद्रित हुई हैं । इसमें प्राचीन टीका श्रीहरिभद्रसूरिकी है, जो इसमें मुद्रित है । यह टीका जैनधर्मप्रसारकसभा भावनगरसे वीर सं० २४३६ में मुद्रित हुई थी, जो अब अप्राप्य है । दूसरी टीका देवचंद लालभाई पुस्तकोद्धार फंडसे १० वर्ष पहले छपी है, जो प्राप्य है। लगभग ५।६ वर्ष पहले इस ग्रंथका अनुवाद स्याद्वाद महाविद्यालय काशीके प्रधानाध्यापक पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने शुरू किया था, पर पं० जीको अवकाश न होनेसे साहित्याचार्य पं० राजकुमारजी शास्त्रीने पूरा किया। पं० जीने मुद्रित प्रति और ४-५ हस्तलिखित प्रतियोंके आधारसे मूल और संस्कृतटीकाका संशोधन सम्पादन बड़े परिश्रमसे किया है, भाषाटीका भी बहुत सुन्दर और सरल लिखी है। इसलिए दोनों विद्वानोंको जितना धन्यवाद दिया जावे थोड़ा है। प्रोफेसर राजकुमारजी इस ग्रन्थकी एक विस्तृत प्रस्तावना लिख रहे हैं, ग्रन्थको शीघ्र प्रकाशमें लानेकी दृष्टिसे वह इस ग्रन्थके साथ नहीं दी जा सकी है। महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना पूर्ण होते ही उसे पृथक् प्रकाशित करके पाठकोंके मैंगानेपर मेज दी जायगी। जैनधर्मप्रसारक सभाके साहित्यसेवी मंत्री स्व० शेठ कुँवरजी आणंदजी और देवचंद लालभाई पुस्तकोद्धार फंडके ट्रस्टी शा० जीवनचन्दजी साकरचन्द्रजी जौहरीने अप्राप्य मुद्रित प्रतियाँ देनेकी कृपा की, इसलिए इन्हें भी धन्यवाद है। रायचंद्रजैनशास्त्रमालामें २-३ नये ग्रंथों का प्रकाशन हो रहा है, जो अगले वर्षतक प्रकट होंगे। जौहरी बाजार रक्षाबन्धन सं.२००७ निवेदक -मणीलाल जौहरी

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