Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth Author(s): Kapurchand Jain Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali View full book textPage 5
________________ BE NA 1-1-1-1-12 1595954545454545454545454545 प्रकाशकीय __ आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रंथ आज आपके हाथों में सौंपते हुए हमें हार्दिक हर्ष और अपरिमित सन्तोष का अनुभव हो रहा है। यह परमपूज्य सराकोद्धारक युवा उपाध्याय १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के आशीर्वाद का ही सुफल है कि आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (गणी) और उनकी परम्परा - के साधुवृन्दों का व्यक्तित्व/कृतित्व साथ ही अन्य प्राचीन जैनाचार्यों की मानव समाज को देन, हम आपके सम्मुख ला सके हैं। शाहपुर (मुजफ्फरनगर) उ०प्र० में पूज्य उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज का वर्ष १९९० में प्रभावक और महिमामय चातुर्मास हुआ था। उस अवसर पर आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) के व्यक्तित्व/कृतित्व को उजागर करने के लिए एक स्मारिका का प्रकाशन हुआ था। प्रकाशनोपरान्त उपाध्याय श्री के सान्निध्य में विद्वानों की चर्चा चल रही थी, विद्वानों का अभिमत था कि छाणी महाराज और उनकी परम्परा के साधको के समुद्रवत् गम्भीर और विराट व्यक्तित्व को प्रकाशित करने के लिए यह स्मारिका खद्योत-तुल्य है। अतः उनकी स्मृति में एक स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन नितान्त आवश्यक है। ___ इस अवसर पर हम भी सपरिवार पूज्य उपाध्याय श्री के दर्शनार्थ गये | थे और विद्वानों की चर्चा के मध्य हमें भी थोड़ी देर बैठने का सौभाग्य मिला था। चर्चा के समय हमारी मातुश्री श्रीमती रतनमाला जैन की यह भावना - बनी कि यदि उस स्मृति ग्रन्थ के प्रकाशन के माध्यम से पूज्य आचार्य LE TE शान्तिसागर जी महाराज और उनकी परम्परा के साधुवृन्दों को विनयाञ्जलि समर्पित करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हो तो हमारा जीवन सफल हो जाये। 1 भावना ने वाणी का रूप लिया और उपाध्यायश्री की मौन स्वीकृति हमें मिल ' गई। तद्नुसार आज इस स्मृति ग्रन्थ के माध्यम से हमारी भावना मूर्त आकार है - ले रही है। BAR -- S प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 545454545454545454545454545Page Navigation
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