Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 4
________________ 154545457554545454545454545454545 आर्यिका भरतमती माताजी की मंगल - कामना S - - - स्वस्ति श्री परम पूज्य १०८ आचार्य शान्तिसागरजी महाराज को आर्यिका भरतमति माताजी का आचार्य भक्तिपूर्वक बारम्बार नमोऽस्तु । बहुजनहितकर-चर्यान्-निरन्तर जनकल्याण में जिनके मन-वचन काय योग की प्रवृत्ति रही तथा भव्य आत्माओं को उपदेश देकर उनका कल्याण किया एवं जिनमार्ग की अपने ज्ञान एवं वैराग्य से समीचीन 57 प्रभावना की । लम्बे अंतराल के पश्चात् आचार्य श्री ने ही मुनिमार्ग का पुनरुत्थान किया और जन-जन को इसका ज्ञान कराकर मार्ग को निष्कंटक किया। आचार्यश्री एवं आचार्यश्री शान्तिसागर जी दक्षिण वाले दोनों मुनिराजों का ब्यावर में एक साथ चातुर्मास हुआ। वह एक स्वर्णिम अवसर था जो सोने पर सुहागा जैसा था। उन्होंने हम सभी पर अनन्त ए उपकार किया क्योंकि विना मुनिधर्म को अपनाए मुक्ति नहीं। उन्होंने - वास्तव में हमारे लिए मोक्षमार्ग प्रशस्त किया। ऐसे महान सन्तों का जीवन-चरित्र जन-जन तक पहुँचाने का LE पुरुषार्थ जिन भव्यात्माओं ने किया वह सभी अपना अज्ञान मिटाकर 4 स्वकल्याण करेंगे। मेरा ऐसे भव्यात्माओं को पुनः-पुनः मंगलमय शुभ आशीर्वाद ............. INS - - Lama P आर्यिका भरतमती माता प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 1145146145454545454545454545454545

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