Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
सं-प्र तेनैवास्त्रमन्त्रपूर्वकेणउपर्युपरिक्रमेण त्रिवारंकलापुनस्तेनैवानमन्त्रणपूर्वादिशमारभ्याऽपस्तादन्तंक्रमेणदशदिग्बन्ध
नमगाठतजन्ययोदितध्वनिपूर्वकंकर्माता तेनैवमन्त्रणतथैवसंयुक्तयाङ्गल्यापरितश्चाग्निप्राकारंध्यानेनर्यातातदक्त ज्यासत्संप्रदायसर्वखाभिधानात्याप्रपञ्चसारविवरणेएभिर्दशभिर्मन् दशसुदिक्षु तर्जन्यङ्ग-ष्ठयोगिकाकोटिकाभिगमनो रक्षाड्यादिति तत्रादिक्पालपूजाविषयोप्रामायूर्वान्तादिक्रमादिग्वधनेतापागायचस्तान्तमितिविशेषातदक्तंचा स्मिन्नवशास्त्रेसुदर्शनपटलेोऐन्द्रीदिशंसमारभ्यदिशन्वधस्तादन्तेप्रोकाचक्रेणबभामिनमस्तथोकाचक्रायशीर्षञ्चदिशा मबन्धति एतत्सर्वक्र मदीपिकायामुक्तञ्चास्नातोनिर्मलसूक्ष्मशुद्धवसनोपौताडि पाण्याननः।खाचान्तःसुपवित्रमुद्रि तकरःश्वेतोर्वपुण्डोज्वलः।प्राचीदिग्वसनोनिबध्यसुदृढपद्मासनस्वस्तिकवासोनःस्वगुरूनगणाधिपमयोवन्देतबद्ध जलिः।ततोत्रमणविशोध्यपाणि त्रितालदिग्बन्धहताशसालानाविधायभूतात्मकमेतदङ्गं विशोधयेकुद्धमतिःक मेणेति।अथतत्रसुदर्शनेन दिग्बन्धने पक्षविशेषउच्यते।ॐनमःसुदर्शनायअलायफडियनेनमन्त्रेणवादशादिग्बन्धन कुर्यात् एवमपिसंप्रदायोस्तिातदुक्तंचक्रमादीपिकायाम्।प्रणवह दोरवसानेसचतुर्थीसुदर्शनञ्चालकचाउकाफडं राम न्तममुनाकलोमनु नास्लमद्रयादर्शहरिततिासुदर्शनेनचेदेवंवा दिग्बन्धनकला।पुनर्भूतभडियीत्।तत्यकारख
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 755