Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir
क्रमदीपिकोक्त प्रकारेणकथ्यते।इडावक्रेधूनंसततगतिबीजंसलवकंस्मरेत्पूर्वमन्त्रीसकलभवनोच्छोषणकरमास्त्र कन्देहन्तेनप्रततवनुषापूर्य्यसकलं विशयाव्यामुञ्चेत्सवनमथमार्गेणखमणेतेनैवमार्गेणविलीनमारुतंबीजंविचि न्यारुणमाशुभुक्षणे:आपूर्यदेहं परिदह्मवामतोमुत्समीरसहभस्मनाबहिः अपरमतीवशुभममृतांशुपयेन विधु नयतललाटचंद्रममुतुःसकलार्णमयीम्।अपरजपान्निपात्परेचयेच्चसयासकलंवपुरमतीपवृष्टिमथवरकरापनि दमाअस्यार्थः।प्रथममिडानाडीवोवामनासिकाग्रामिडा नाडीवक्रमातत्रवायु बीजम्ासलवकमालवकामितिबिन्दुः। तेनयुक्तंपुनस्तद्वीजमापूम्रवर्णज्वाधूम्रामितिानीललोहितमिश्रवर्णन्तादर्शवाय बीजारख्यंयकारंसकलभुवनोच्लोष णकरंस्मरेता एवंस्मृत्वाप्रततवपुषाव्याप्तवपुषाातेनवायुनावकन्देहम्।वाम नासिकाश्वासमार्गेणैवापूर्य।सकले दै हिकदुष्टमाविशोषितंस्मृत्वापुनःखमणेरादित्यस्यमार्गेणपिङ्गलनाडीमार्गेण दक्षिणनासिकाश्वास मार्गेणेत्यर्थः। तेनमा गैणतेपूर्वपूरितवायुज्यामुञ्चे तारेचयेदिस्यर्थः पुनरपिातेनैवमार्गेणखमणे मार्गेणपिङ्ग लामार्गेण दक्षिणनासिकाश्वा समार्गेणेत्यर्थः तेनमार्गेणपूर्वविसष्टमारुतमेवपश्वाहिलानमारुतंनिवर्तयित्वातत्रैवप्रविष्टमारुतं कृत्वापुनराशुशु क्षणेरग्नेजिंसबिन्दुकरेफामित्यर्थःातहीजमरुणमव्यक्तरागस्वरूपमेतादृशमाशुशक्षण/जन्तु विलीनमारुल मितिकि
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 755