Book Title: Prapanchasara Sangraha
Author(s): Giryanendra Saraswati
Publisher: Giryanendra Saraswati
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जोच्चारपञ्चकेनपत्रपुष्पफलरहितस्तदंविभाव्यापूरकापरार्द्धनाप्रतिष्ठाकलाबीजस्यचतुकोच्चारणेनादम्पपत्रफल पुष्योपेतंविचिन्याकुम्भकेनप्रथमापराभ्याविद्याकलाबीजोच्चारत्रयेणादग्धसमूलं विभाव्यारेचकपूर्वार्द्धनशान्तिकला बीजोचारमेनभस्मीद्वतंदशदिक्षप्रलीनविभाज्यारेचकापरार्दैनशासतीतकलाबीजैकोच्चारणेनशुद्धस्फटिकरूपंसं चिन्तयेताततोदग्धरूपैसर्वशून्यमितिविभाज्यावौषउन्तमूलेनाशिखान्नस्थापोमुखपद्मास्त्रवदमृतधाराभिः सकलनाडीम खंप्रविष्टाभि:।स्व बाह्याभ्यन्तरंसर्वशरीरमालाव्यहदयेनालपत्रकर्णिकारूपंपद्यमकरादिमात्रात्रययुक्तेनप्रणवेनशुद्ध वियात्मकमासनविन्यस्यातकर्णिकायापूर्यष्टकंचतफलेनप्रणवेनावतीर्णभावयित्वातस्मिन्हादशान्तस्थजीवरूपं शिवमयमात्मानं पजकलेनप्रणवेनपूरकेणसश्यासमानीयज्योतीरूपंसंस्थाप्यावौषडन्तशक्तिमन्त्रोच्चारेणासुयश क्तिपरिसतबहलामतप्रवाहेणाभिषिञ्वेतातत्रल्हाभितिनितिकलाबीजमा हामिति प्रतिष्ठाकलाबीजमाई हैं ह्रीं मितिविद्याशान्त्यतीतकलाबीजानिक्रमेणएवम् रहस्यागमोक्तप्रकारभूतद्धिः अनेनप्रकारेणवा पूर्वोक्तक्रमदीपिको क्तप्रकारेणवा भूतशुद्धिकत्वा।पुनर्हकारत्रयमुच्चायोसुषुम्नानाडीमार्गनिरोधकपवेत्रयभजनकत्वाहिसदत्युच्चायाभूला पारस्यजीवंसुषुम्न याहादशान्तनयन्।पुनःसोहनित्युच्चायीद्वादशान्तेसहस्रदलकमलमध्यस्थसहस्रादित्यसङ्काशंपरमा
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