Book Title: Pramey Kamal Marttand
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Satya Bhamabai Pandurang

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Page 12
________________ कर निम्नलिखित उपभागोंमें क्रमशः विभाजित कर दिया है। 1 वैदिक दर्शनवेद, उपनिषद, स्मृति, पुराण, महाभारत, वैयाकरण, सांख्य योग, वैशेषिक न्याय, पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा । २ अवैदिक दर्शन-बौद्ध, जैन-दिगम्बर, श्वेताम्बर । (वैदिकदर्शन) वेद और प्रभाचन्द्र-आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्डमें पुरातनवेद ऋग्वेदसे “पुरुष एवेदं यद्भूतं" "हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे" आदि अनेक वाक्य उद्धृत किये हैं । कुछ अन्य वेदवाक्य भी न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० ७२६ ) में उद्धृत हैं-"प्रजापतिः सोमं राजानमन्वसृजत् , ततस्त्रयो वेदा अन्वसृज्यन्त” "रुद्रं वेदकर्तारम्" आदि । न्यायकुमुदचन्द्र (पृ. ७७० ) में “आदौ ब्रह्मा मुखतो ब्राह्मणं ससर्ज, बाहुभ्यां क्षत्रियमुरूस्यां वैश्यं पद्भ्यां शूद्रम्" यह वाक्य उद्धृत है । यह ऋग्वेद के "ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्” आदि सूक्तकी छाया रूप ही है। उपनिषत् और प्रभाचन्द्र-आ० प्रभाचन्द्रने अपने दोनों न्यायग्रन्थों में ब्रह्माद्वैतवाद तथा अन्य प्रकरणों में अनेकों उपनिषदों के वाक्य प्रमाणरूपसे उद्धृत किये हैं । इनमें बृहदारण्यकोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद्, कठोपनिषत् , श्वेताश्तरोपनिषत्, तैत्तिर्युपनिषत् , ब्रह्मविन्दूपनिषत , रामतापिन्युपनिषत् , जावालोपनिषत् आदि उपनिषत् मुख्य हैं । इनके अवतरण अवतरणसूची में देखना चाहिये। स्मृतिकार और प्रभाचन्द्र-महर्षि मनुकी मनुस्मृति और याज्ञवल्क्यकी याज्ञवल्क्यस्मृति प्रसिद्ध हैं । आ० प्रभाचन्द्रने कारकसाकल्यवादके पूर्वपक्ष ( प्रमेयक० पृ० ८ ) में याज्ञवल्क्यस्मृति ( २१२२ ) का “लिखितं साक्षिणो भुक्तिः" वाक्य कुछ शाब्दिक परिवर्तनके साथ उद्धृत किया है। न्यायकुमुदचन्द्र (पृ. ५७५) में मनुस्मृतिका "अकुर्वन् विहितं कर्म" श्लोक उद्धृत है। न्यायकुमुदचन्द्र (पृ. ६३४) में मनुस्मृतिके “यज्ञार्थं पशवः सृष्टाः" श्लोकका “न हिंस्यात् सर्वा भूतानि" इस कूर्मपुराणके वाक्यसे विरोध दिखाया गया है। पुराण और प्रभाचन्द्र-प्रभाचन्द्रके प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्रमें मत्स्यपुराणका “प्रतिमन्वतरञ्चैव श्रुतिरन्या विधीयते।" यह श्लोकांश उद्धृत मिलता है। न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० ६३४ ) में कूर्मपुराण ( अ० १६) का “न हिंस्यात् सर्वा भूतानि" वाक्य प्रमाणरूपसे उद्धृत किया गया है। . व्यास और प्रभाचन्द्र-महाभारत तथा गीताके प्रणेता महर्षि व्यास माने जाते हैं। प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ. ५८०) में महाभारत वनपर्व (अ० ३०।२८) से "अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयोः..." श्लोक उद्धृत किया है। प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० ३६८ तथा ३०९ ) में भगवद्गीताके निम्नलिखित श्लोक 'व्यासवचन' के नामसे उद्धृत है-“यथैधांसि -समिद्धोऽग्निः.." गीता ४।३५] "द्वाविमौ . पुरुषौ लोके, उत्तमपुरुषस्त्वन्यः..." [गीता

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