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प्रमेयकमलमार्तण्ड
म्भोजभास्कर, महापुराणटिप्पण और गद्यकथाकोश । श्रीमान् प्रेमीजीने रत्नकरण्ड.
१ पं० जुगलकिशोर जी मुख्तारने रलकरण्डश्रावकाचार की प्रस्तावनामें रत्नकरण्डश्रावकाचारकी टीका और समाधितत्रटीकाको एकही प्रभाचन्द्र द्वारा रचित सिद्ध किया है; जो ठीक है । पर आपने इन प्रभाचन्द्रको प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिके रचयिता तर्कग्रन्थकार प्रभाचन्द्रसे भिन्न सिद्ध करनेका जो प्रयत्न किया है वह वस्तुतः दृढ़ प्रमाणों पर अवलम्बित नहीं है । आपके मुख्यप्रमाण हैं कि-"प्रभाचन्द्रका आदिपुराणकारने सरण किया है इस लिए ये ईसाकी नवमशताब्दीके विद्वान् हैं, और इस टीकामें यशस्तिलकचम्पू (ई० ९५९) वसुनन्दिश्रावकाचार ( अनुमानतः वि. की १३ वीं शताब्दीका पूर्व भाग ) तथा पद्मनन्दि उपासकाचार (अनुमानतः वि० सं० १९८०) के श्लोक उद्धृत पाए जाते हैं, इसलिए यह टीका प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिके रचयिता प्रभाचन्द्रकी नहीं हो सकती ।" इनके विषयमें मेरा यह वक्तव्य है कि-जब प्रभा. चन्द्र का समय अन्य अनेक पुष्ट प्रमाणोंसे ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दी सिद्ध होता है तब यदि ये टीकाएँ भी उन्हीं प्रभाचन्द्रकी ही हों तो भी इनमें यशस्तिलकचम्पू और नीतिवाक्यामृतके वाक्योंका उद्धृत होना अस्वाभाविक एवं अनैतिहासिक नहीं है। वसुनन्दि और पद्मनन्दिका समय भी विक्रमकी १२ वी और तेरहवीं सदी अनुमानमात्र है, कोई दृढ़ प्रमाण इसके साधक नहीं दिए गए हैं। पद्मनन्दि शुभचन्द्र के शिष्य थे यह बात पद्मनन्दिके ग्रन्थसे तो नहीं मालूम होती। वसुनन्दिकी 'पडिगहमुच्चट्ठाणं' गाथा स्वयं उन्हीं की बनाई है या अन्य किसी आचार्यकी यह भी अभी निश्चित नहीं है। पद्मनन्दिश्रावकाचारके 'अध्रुवाशरणे' आदि श्लोक भी रत्नकरण्डटीकामें पद्मनन्दिका नाम लेकर उद्धृत नहीं हैं और न इन लोकोंके पहिले 'उक्तं च, तथा चोक्तम्' आदि कोई पद ही दिया गया है जिससे इन्हें उद्धृत ही माना जाय । तात्पर्य यह कि मुख्तार सा० ने इन टीकाओंके प्रसिद्ध प्रभाचन्द्रकृत न होने में जो प्रमाण दिए हैं वे दृढ़ नहीं हैं । रत्नकरण्डटीका तथा समाधितत्रटीकामें प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रका एक साथ विशिष्टशैलीसे उल्लेख होना इसकी सूचना करता है कि ये टीकाएँ भी प्रसिद्ध प्रभाचन्द्रकी ही होनी चाहिए। वे उल्लेख इस प्रकार हैं- .
"तदलमतिप्रसङ्गेन प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे प्रपञ्चतः प्ररूप-- णात्"-रत्नक० टी० पृ० ६ । “यैः पुनर्योगसांख्यैर्मुक्तौ तत्प्रच्युतिरात्मनोऽभ्युपगता ते प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे च मोक्षविचारे विस्तरतः प्रत्याख्याताः।"-समाधितन्त्रटी० पृ० १५ ।
इनः दोनो अवतरणोंकी प्रभाचन्द्रकृत शब्दाम्भोजभास्करके निम्नलिखित अवतरणसे तुलना करने पर स्पष्ट मालूम हो जाता है कि शब्दाम्भोजभास्करके कर्त्ताने ही उक्त. टीकाओंको बनाया है"तदात्मकत्वं चार्थस्य अध्यक्षतोऽनुमानादेश्च यथा सिध्यति तथा प्रमेयकमल. मार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे च प्ररूपितमिह द्रष्टव्यम् ।"-शब्दाम्भोजभास्कर।
प्रभाचन्द्रकृत गद्यकथाकोशमें पाई जानेवाली अञ्जनचोर आदिकी कथाओंसे रत्नकरण्डटीकागत कथाओंका अक्षरशः सादृश्य है । इति ।