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प्रस्तावना
नन्तर्यमुभयापेक्षयापि समानम्-यथैव भूतापेक्षया तथा भाव्यपेक्षयापि । नचानन्तर्यमेव तत्त्वे निबन्धनम् , व्यवहितस्य कारणत्वात्
गाढमुप्तस्य विज्ञानं प्रवोधे पूर्ववेदनात् । जायते व्यवधानेन कालेनेति विनिश्चितम् ॥ तस्मादन्वयव्यतिरेकानुविधायित्वं निबन्धनम् ।
कार्यकारणभावस्य तद् भाविन्यपि विद्यते ॥ भावेन च भावो भाविनापि लक्ष्यत एव । मत्युप्रयुक्तमरिष्टमिति लोके व्यवहारः, यदि मृत्युर्न भविष्यन्न भवेदेवम्भूतमरिष्टमिति।"-प्रमाणवार्तिकालङ्कार पृ० १७६ । परीक्षामुख के निम्नलिखित सूत्र में प्रज्ञाकरगुप्त के इन दोनों सिद्धान्तों का खंडन किया गया है
"भाव्यतीतयोः मरणजाग्रद्बोधयोरपि नारिष्टोद्बोधौ प्रति हेतुलम् । तद्व्यापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वम् ।”-परीक्षामु० ३।६२,६३ । ___ छठे अध्याय के ५७ वें सूत्र में प्रभाकर की प्रमाणसंख्या का खंडन किया है। प्रभाकर गुरु का समय ईसा की ८ वीं सदी का प्रारम्भिक भाग है।
माणिक्यनन्दि का समय-प्रमेयरत्नमालाकार के उल्लेखानुसार माणिक्यनन्दि आचार्य अकलंकदेव के अनन्तरवर्ती हैं। मैं अकलङ्कग्रन्थत्रय की प्रस्तावना में अकलंकदेव का समय ई० ७२० से ७८० तक सिद्ध कर आया हूँ। अकलङ्कदेव के लघीयस्त्रय और न्यायविनिश्चय आदि तर्कग्रन्थों का परीक्षामुख पर पर्याप्त प्रभाव है, अतः माणिक्यनन्दि के समयकी पूर्वावधि ई. ८०० निर्बाध मानी जा सकती है। प्रज्ञाकरगुप्त ( ई० ७२५ तक ) प्रभाकर ( ८ वीं सदी का पूर्वभाग) आदि के मतों का खंडन परीक्षामुख में है, इससे भी माणिक्यनन्दि की उक्त पूर्वावधि का समर्थन होता है। आ० प्रभाचन्द्र ने परीक्षामुख पर प्रमेयकमलमार्तण्डनामक व्याख्या लिखी है। प्रभाचन्द्र का समय ई. की ११ वीं शताब्दी है । अतः इनकी उत्तरावधि ईसा की १० वीं शताब्दी समझना चाहिए। इस लम्बी अवधि को सङ्कुचित करने का कोई निश्चित प्रमाण अभी दृष्टि में नहीं आया। अधिक संभव यही है कि ये विद्यानन्द के समकालीन हों और इसलिए इनका समय ई० ९ वीं शताब्दी होना चाहिए।
आ० प्रभाचन्द्र आ० प्रभाचन्द्रके समयविषयक इस निबन्धको वर्गीकरणके ध्यानसे तीन स्थूल भागों में बाँट दिया है-१ प्रभाचन्द्र की इतर आचार्यों से तुलना, २ समयविचार, ३ प्रभाचन्द्र के ग्रन्थ । ६१. प्रभाचन्द्र की इतर आचार्यों से तुलना
इस तुलनात्मक भागको प्रत्येक परम्पराके अपने क्रमविकासको लक्ष्यमें रख.