Book Title: Pramana Pariksha
Author(s): Vidyanandacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ १० : प्रमाण-परीक्षा तत्त्वार्थसूत्र उसी श्रृंखलाकी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसपर अनेकों आचार्योंने विशाल और छोटी दर्जनों टीकाएँ लिखी हैं और जिनका बहुत मान है । स्वामी समन्तभद्रने न्यायशास्त्रका आरम्भ ही नहीं, विकास भी किया । देवागम, युक्त्यनुशासन और स्वयम्भू ये तीन उनकी महत्त्वपूर्ण एवं मौलिक न्यायकृतियाँ हैं, जिन्हें उत्तरवर्ती जैन मनीषियोंने आधार बनाया और अपने न्याय ग्रन्थ लिखे । श्रीदत्त, पात्रस्वामी, सिद्धसेन, मल्लवादी आदि तार्किकोंने उनके कार्यको अग्रसारित किया । श्रीदत्तने जल्प-निर्णय, पात्रस्वामीने त्रिलक्षणकदर्थन, सिद्धसेनने सन्मतिसूत्र और मल्लवादीने द्वादशारनयचक्रको रचना कर जैन तर्कशास्त्रको समृद्ध किया है। अकलंकदेवने तो अकेले ही अनेक न्यायग्रन्थ रचे, जिनसे समग्र जैन न्यायवाङ्मय दीप्तिमान हो गया । उनके न्याय-विनिश्चय, प्रमाणसंग्रह, लधीयस्त्रय, सिद्धिविनिश्चय और अष्टशती ऐसे तर्कग्रन्थ हैं जो अतुलनीय हैं । कुमारनन्दिका वादन्याय उल्लेखनीय है, जो आज उपलब्ध नहीं है । जैन ताकिकोंमें विद्यानन्दका नाम बड़े आदर और गौरवके साथ लिया जाता है । उनके विद्यानन्दमहोदय, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, अष्टसहस्री (देवागमालंकार), आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा और सत्यशासनपरीक्षा सर्वादरणीय एवं अद्वितीय न्यायग्रन्थ हैं । वादीभसिंहकी स्याद्वादसिद्धि, बृहद् अनन्तवीर्यकी सिद्धिविनिश्चयटीका और वादिराजके न्यायविनिश्चयविवरण एवं प्रमाण - निर्णय भी ध्यातव्य हैं । माणिक्यनन्दिका परीक्षामुख ऐसा न्यायसूत्रग्रन्थ है, जो जैन न्यायका आद्य न्यायसूत्र है और जिसपर प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्त्तण्ड, अनन्तवीर्यने प्रमेयरत्नमाला जैसी विशद एवं विस्तृत व्याख्याएँ लिखी हैं । प्रभाचन्द्रकी न्यायकुमुदचन्द्र —-- लघीयस्त्रय - व्याख्या भी बड़ी विशद और प्रमेयबहुल है । देवसूरिका प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, हेमचन्द्रकी प्रमाणमीमांसा और अभिनव धर्मभूषणकी न्यायदीपिका भी जैन न्यायके महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं । अन्तिम जैन तार्किक यशोविजयकी जैन तर्कभाषा, अष्टसहस्रीटीका और चारुकीर्तिका प्रमेयरत्नालंकार विशेष उल्लेख योग्य हैं । इस तरह जैन न्यायशास्त्रपर एक निहंगम दृष्टि डालने पर अवगत होता है कि बौद्ध और हिन्दू तार्किकों की तरह जैन तार्किकोंने भी न्यायशास्त्रपर सैकड़ों रचनाएँ लिखी हैं और उसके भण्डारको समृद्ध किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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