________________ धनतेरस या ध्यानतेरस ? 2 आचार्य विद्यानन्द मुनि - तीर्थंकर महावीर का निर्वाणोत्सव प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्णा अमावस्या को दीपावली के रूप में मनाया जाता है। यह प्रकाश का पर्व है, ज्ञान का पर्व है। दीपावली से दो दिन पूर्व कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को हम 'धनतेरस' का पर्व भी मनाते हैं जो वस्तुतः धनतेरस नहीं है, ध्यानतेरस है; क्योंकि उस दिन तीर्थंकर महावीर पूर्ण योग-निरोध करके परम शुक्लध्यान में स्थित हो गये थे। . .. यह विडम्बना ही है कि धनलोलुपी लोगों ने इस 'ध्यानतेरस'. को भी 'धनतेरस' के नाम से विकृत कर दिया है और इस दिन 'ध्यान' की बजाय धन (रुपये-पैसे, लक्ष्मी) की पूजा करना प्रारम्भ कर दिया है। इसे संसारी प्राणियों की वित्तैषणा का ही चमत्कार समझना चाहिये। ध्यानतेरस एक अत्यन्त महान् पर्व है। इस दिन हमें ध्यान का स्वरूप एवं महत्त्व समझना चाहिये / ध्यान की पवित्र भावना करनी चाहिये और थोड़ा-बहुत समय निकाल कर, पाँच-दस मिनट ही सही, यथाशक्ति ध्यान भी अवश्य करना चाहिये। ध्यान में महान् शक्ति है। कहा गया है कि- 'ध्यानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरुते क्षणात् / ' अर्थ:- ध्यानरूपी अग्नि सर्वकर्मों को क्षण भर में भस्म कर देती है। . अज्ञानी जीव अनादि काल से वित्तैषणा एवं लोकैषणा में उलझे हुए हैं और इसीकारण वे इस महान् ध्यानपर्व ध्यानतेरस को भी धनतेरस समझकर इस दिन धन की पूजा करने लगे हैं, परन्तु इस विषय में उन्हें यह भलीभाँति समझ लेना चाहिये कि धन की प्रप्ति जीव के पूर्व पुण्योदय एवं प्रबल पुरुषार्थ से ही होती है, किसी की पूजा से नहीं। अनेक लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन लक्ष्मी की पूजा करते हैं फिर भी निर्धन हैं और अनेक लोग ऐसे भी हैं जो कभी लक्ष्मी-पूजा नहीं करते, फिर भी बड़े धनवान हैं। विचारणीय है कि डॉलर, पौण्ड, येन (जापानी-मुद्रा) कमाने वाले इतरदेशीय लोग कब किस लक्ष्मी की पूजा करते हैं? वस्तुतः लक्ष्मीपूजा का तात्पर्य प्रबल पुरुषार्थ ही से समझना चाहिये। धन-लक्ष्मी की प्रप्ति का तो एक ही अमोघ मन्त्र है, जिस पर अत्यन्त गहराई से विचार करना आवश्यक है- 'उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी।' अर्थ :- लक्ष्मी परिश्रमी एवं पराक्रमी पुरुष का ही वरण करती है। लोग आज के दिन पात्र (बर्तन) खरीदते हैं, उसका भी असली अभिप्राय यही था कि ध्यान के पात्र बनो, पर लोग मात्र बर्तनादि खरीदकर इतिश्री समझ लेते हैं। कहने का मूल तात्पर्य यह है कि आज कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को हम धनतेरस नहीं, ध्यानतेरस समझें और इस दिन धन की नहीं, ध्यान की उपासना करें। आज के दिन थोड़ी देर ही सही, अवश्य धर्मध्यान करें, आत्मध्यान करें। वर्ष में 365 दिन तो धनतेरस मनाते ही हैं, कम से कम आज एक दिन तो ध्यानतेरस अवश्य मनायें। गृहस्थ श्रावक धर्मध्यान हेतु दैनिक षट् आवश्यकों का भी पालन करें “देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः / दान चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने।।"