Book Title: Prakrit Vidya 2001 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 2
________________ आवरण पृष्ठ के बारे में आवरण-पृष्ठ पर मुद्रित चित्र जैन - परम्परा के अष्टमंगल- द्रव्यों में परिगणित पावन प्रतीक-चिह्न 'पंचवर्णी ध्वज' का है । समस्त जैनसमाज और परम्परा में यही ध्वज निर्विवाद रूप से मान्य है। यह एक पंच परमेष्ठियों का सूचक मांगलिक प्रतीक है, जिसमें श्वेतवर्ण की पट्टिका 'अरिहंत परमेष्ठी' की, लालरंग की पट्टिका 'सिद्ध परमेष्ठी' की, पीले रंग की पट्टिका ‘आचार्य परमेष्ठी' की, हरे रंग की पट्टिका 'उपाध्याय परमेष्ठी' की तथा गहरे नीले या काले रंग की पट्टिका 'साधु परमेष्ठी' की द्योतक होती है। इसके मध्य में निर्मित स्वस्तिक का चिह्न चतुर्गति संसार-परिभ्रमण से मुक्तिपूर्वक आत्मलाभ को सूचित करता है। यह भी एक मांगलिक संयोग है कि वर्तमान चौबीसी के चौबीसों तीर्थंकरों के शरीरों का वर्ण भी इन्हीं पाँचों वर्णों में वर्गीकृत है। इस बारे में आचार्य कुन्दकुन्दप्रणीत 'मूलाचार' ग्रंथ की यह गाथा द्रष्टव्य है “णमिदूण जिणवर्रिदे, तिहुवणवरणाण-दंसणपदीवे । कंचण-पियंगु-विदुम-घण- कुंदमुणाल - वण्णाणं । । ” - ( आचार्य कुन्दकुन्द, मूलाचार 8-1 ) चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त का शरीर वर्ण कुन्दपुष्प, चन्द्र, बर्फ, कपूर या हीरा मुक्ताहार की तरह 'श्वेतवर्णी’; सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ का शरीर - वर्ण मंजरी (मेंहदी के पत्तों) की तरह अथवा बिना पके धान्य के पौधों की तरह 'हरितवर्णी', मुनिसुव्रत और नेमिनाथ का शरीरवर्ण नीलांजनगिरि अथवा मयूरकण्ठ की तरह 'नीलवर्णी', पद्मप्रभ और वासुपूज्य का शरीरवर्ण कमल अथवा टेसू के पुष्प की तरह 'लालवर्णी', और शेष 16 तीर्थंकरों का शरीरवर्ण तपाये सुवर्ण (सोने) की तरह पीतवर्ण वाले बताये हैं। इसीप्रकार निर्ग्रन्थ जैन- श्रमणों के करकमलों मे जीवदया - उपकरण के रूप प्रतिष्ठित रहनेवाली मयूरपिच्छी भी पंचवर्णी कही गयी है — “ मयूरपिच्छं मृदु-पञ्चरंगम् ।” —सम्पादक जैन - शासन का ध्वज - गीत आदि- दे - वृषभ के पुत्र भरत का, भारत - देश महान् ।। 1 ।। वृषभदेव से महावीर तक करें सुमंगल-गान ॥ 2 ॥ पाँच रंग पाँचों परमेष्ठी, युग को दें आशीष ।। 3 ।। विश्व - शांति के लिये झुकावें, पावन ध्वज को शीश ॥ 4 ॥ 'जिन' की ध्वनि 'जैन' की संस्कृति, जग-जन को वरदान ॥ 5 ॥ भरत का भारत देश महान् ।

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