Book Title: Prakrit Shabdakosh Ke Liye Prashnavali Author(s): A M Ghatage Publisher: A M Ghatage View full book textPage 3
________________ ३ - स्थानांग समवायांग नदीसूत्र आदि जैन साहित्य में द्विभाजन प्रक्रिया से बने हुअ दीर्घ सामासिक शब्दों के बारे में आपका अभिमत क्या है ? - सन्दर्भ शब्द १५. प्राकृत शब्दों की व्युत्पत्ति स्पष्ट हो इस लिए समानार्थी संस्कृत शब्द पृथक्करण एवं अवतरण चिन्हों के साथ देना सोचा गया है । देखिए मैक्डोनेल की फन्साईज संस्कृत डिक्शनरी " ऐसा करने से क्या उदिदष्ट साध्य होगा १ यथा सम्भव उच्चारण- चिन्हों का प्रयोग करे क्या १ ए 11 एम. मैय- होफर का पाली शब्दसूचि (Hand buch des Pali II) की तरह व्यत्पत्ति के बारे में संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओं का आश्रय लेना कहाँ तक उचित होगा ? १६. संदर्भ शब्द कोश में प्रातिपादिक स्वरूप में दिया जाए या प्रथमा एकवचन में १ यदि प्रातिपदिक स्वरूप में देना पसन्द हो तो जिनके दीर्घ स्वर प्रथमा एकवचन में -हस्वीभूत (उदा.- कहा का कह: ) हो जाते है, ऐसे अपभ्रंश शब्दों के बारे में क्या किया जाए ? उनका उल्लेख स्वतंत्र रूपसे करे क्या ? १७. मत्वर्थीय इन प्रत्यय युक्त संस्कृत शब्दोंका मूल रूप कैिनसा स्वीकृत हो ? प्राकृत में उनका अन्त्यस्वर इ हो या ई ? १८.. काव्य या स्तोत्र अन्तर्गत भाषा लेख के अवतरण विना संस्कृत प्रतिशब्दों के किस प्रकार उद्धृत किये जाए ? प्राकृत का विशिष्ट पर्याय किस प्रकार सूचित करे ? १९. क्लिष्ट शब्दों के बारे में कौनसी नीति का अवलंब करे ? उनका विभाजन करके मूल रूप से यथा स्थान करें ? या एकही स्थानपर विभिन्न अर्थ दें ? सभंग रेषयुक्त अर्थों के बारे में खास विचार करना है । २०. समानोच्चारित शब्दों की विभिन्नता किस प्रकार दिग्दर्शित हो १ उनके व्याकरणान्तर्गत रूप या संस्कृत संवरूप भिन्न हो तो वह दिग्दर्शित करना आवश्यक है १ ४Page Navigation
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