Book Title: Prakrit Shabdakosh Ke Liye Prashnavali
Author(s): A M Ghatage
Publisher: A M Ghatage

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Page 2
________________ - २ - दित्वव्यंजन के द के अभावात्मक खदाई के कारण प्राकृत शब्दों मे उनका अन्तभाव होना क्या ठीक होगा १ ७. संस्कृत नाटय साहित्य के प्राकृत शब्दों का एवं परंपरागत भाषाओं में निर्धारण किया जा सकता है, परन्तु अलंकार शास्त्र, प्रबंधीचरित्रों में यत्र-तत्र उपलब्ध शब्दों के बारे में कौनसी नितिबरती जाए ? धवला, जयधवला एवं महाधवला जैसे ग्रंथो में दिगद धिीत शब्दोंतक ही सीमित विचार क्या ठीक होगा। ९. जो पुस्तकें संस्कृत एवं प्राकृत में मिश्रित है, उनमें से साहित्य का संचयन किस प्रकार किया जाए १ जब दीर्घ फखरे तथा प्रकरण प्राकृत में होते है, तब वे अलग कर के प्रयक्त किए जा सकते है, परन्तु कुछ चाणियों में एकही वाक्य अंध अंशतः प्राकृत एवं अंशत: संस्कृत में हो तो उध्दरण किस प्रकार किया जाए ? १०. बिना लंबाई का विचार किए लौकिक एवं. तांत्रिक न्याय का समावेश करें ? क्या प्राकृत साहित्य में कथाओं पर आधारित न्याय बहुलता से पाये जाते हैं, क्या उनका अन्तर्भाव किया जाए १ बिना कहा नियाँ जाने वे समझ में नही आ सकते, तो क्या कहानियां भी अन्तर्भूत की जाएँ ? लिए गये उध्दारणों के बारेमे क्या सभी के अनुवाद देना आवश्यक है १ या कुछ एकों के अथवा शंकास्पद बाबतों में ही सिर्फ अनवाद दिये जाए? २. जिनका उदगम ज्ञात न हो. तो वैसा स्पष्ट उल्लेख किया जाए या अज्ञात उदगम की बाब पाठकी के तर्क पर छोड दी जाए ? १. दिपदीय एवं . १३.. संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओं से लिए गये पब्दिों के बारेमें वैसा उल्लेख करना क्या आवश्यक है ? - १४. द्विपदीय एवं त्रिपदीय सामासिक शब्दों. जिनमें प्रथम पद का तृतीय पदसे सीधा सम्बन्ध हो, वो अन्तभाव का समर्थन किस प्रकार किया जाए ?

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