Book Title: Prakrit Shabdakosh Ke Liye Prashnavali
Author(s): A M Ghatage
Publisher: A M Ghatage

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Page 7
________________ ४५.. न(न्न), ज (ण) के लेखन में प्रचलित विभिन्न प्रकारों में से आप किसे मान्य रखेग १ अ. आदय न एवं ण विभिन्न कृतियों में जैसे पाये जाते है अथवा "पाइयसददमहण्णव" के अनुसार सभी "ण' में लिए जायें ? संस्कृत के हो या न हो """ पर से न्न एवं पण ? उदा. वर्ण का वण, किन्तु प्रज्ञा का पणा। ४६. प्राकृत वैयाकरणों ने जिसका उल्लेख नहीं किया है, परन्तु प्राकृत साहित्य के हस्त लिखितों ने अनेक बार पायी जानेवाली तश्रुति के बारे में आपकी क्या राय है ? अ. मूल संस्कृत शब्द में त हो तो मात्र वह वैसाही रहने दिया जाए १ ब.. अथवा ऐसे सभी त के ऐवज में य का प्रयोग किया जाए ? क. हस्त लिखितों एवं संपादित ग्रंथी में विना कोई भेदभाव के प्रयुक्त हो तो लिखित त या य अथवा य का त में हम रूपांतर करे क्या १ इ. विभिन्न ग्रंथों में सि प्रकार पाये जाते • है, उसी प्रकार उनका उपयोग करने में सतत पुनरावृत्ति एवं अर्थहीन गडबडी नहीं होगी ? इ. त का लिखना भाषा की प्राचीनता से कोई संबन्ध रखता है १ वह पुरानी प्रथा जारी रखना है या संस्कृत का प्रभाव है ? फ जैसा कि य के बारेमें होता है। अक्षा के उपर या नीचे नक्ता टेने जैसा केई मार्ग आप सूचित करेंगे, १ . ४७. सामासिक शब्दों में से लियाढिवा संयुक्त व्यंजन शब्दारंभ में वैसा ही रखें क्या ? कुछ कोशों में इस तरह किया गया है। ४८. -हस्व ह एवं -हस्व ए के उपयोग के बारे में सामान्य नियम आप स चित करेग १ इसके लिए आप कोई तरीका सूचित करेगे १ ४९. मूल ह से प्राकृत में आया हुवा ह, संयुक्ताक्षर पूर्व का ई प्राकृत में बना ह, -हस्व ए के, लिये लिखा जानेवाला -हस्व ह इनका भेद

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