Book Title: Prakrit Shabdakosh Ke Liye Prashnavali Author(s): A M Ghatage Publisher: A M Ghatage View full book textPage 8
________________ - ८ - दशान के लिए क्या व्युत्पत्तिशास्त्र का - आश्रय लिया जाए १ उदा.- इत्थ, एत्थ, इत्थी उ एवं ओ के बारे में भी वही लागू होगा । ५०. जब सामान्य नियम काम आता हो, तब संयुक्ताक्षर पूर्व -हस्व या दीर्घ ए तथा ओ में फर्क करना क्या आवश्यक है ? ५१. अन्तिम अनुस्वार तथा बाद में आये हुए अनुनासिक एवं न्न, पण म्म जसे द्वित्व अनुनासिक में भेद करना क्या आवश्यक है ? संस्कृत के संख्याबध्द संयुक्ताक्षरों से आगत द्वित्वभत अनुनासिक का प्रयोग करना क्या आप पसन्द करेगे या अनुस्वार १ अनेक संपादक सप्तमी एकवचन का प्रत्यय म्मि लिखना पसन्द करते है। अकारादिक्रम ८१२. बहुतांश शब्दों के बाद संस्कृत प्रतिशब्द दिये जाने के कारण अक्षरानुक्रम यथासम्भव संस्कृत रखना उचित होगा । कुछ कुछ बदल करना भी जरूरी होगा। ५३. विसर्ग के अलावा प्राकृत की सर्वसाधारण अक्षर. रचना संस्कृत से मिलती जलती कोश में उप'यो जित है । सरसरी तौर पर इसी का अनुसरण होगा | अधिक उपयुक्त सुधार संभवनीय हो तो कृपया सुझाएँ। ५४. अनुनासिक एवं अनुस्वार इन दोनों के लिए अनुस्वार का ही उपयोग सर्वत्र किया जायेगा। क्या आप इससे सहमत है १ अथवा विराम चिह्न के पूर्व परसवर्ण, एवं उष्मवर्ण, अर्धस्वर तथा महा प्राण के पूर्व अनुस्वार देना आप पसन्द करेगे ? ५५. मूल पब्दिरूप के बाद तुरन्त अनुस्वार आयेगा, फिर उसका उद्भव कहीं से भी हो बिना अर्थ का विचार किये इसि के बाद इसि, सम्म के बाद सम्म आयेगे. क्या यह लिखना स्वीकार्य होगा ? ५६. संस्कृत के अनुस्वार ळ को ल माना जायेगा और वही उसका अक्षरानुक्रम रहेगा ।Page Navigation
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