Book Title: Prakrit Sahitya ki Roop Rekha
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 4
________________ (भूमिका प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने की दृष्टि से प्राकृत भाषा का साहित्य अत्यन्त उपयोगी रहा है। प्राचीन भारत में प्राकृत भाषा का जनता में सर्वत्र प्रचार था। वैदिक काल में जन-साधारण द्वारा बोली जाने वाली इस भाषा को महात्मा बुद्ध एवं भगवान् महावीर ने अपने उपदेशों का माध्यम बनाया और जनकल्याण के लिए इसी भाषा में उपदेशों की सृष्टि की। प्राचीन भारत में प्राकृत भाषा की जनभाषा के रूप में लोकप्रियता का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण शिलालेखी साहित्य है। सम्राट अशोक ने जनभाषा प्राकृत की महत्ता को देखते हुए शिलालेखों, सिक्कों एवं राजाज्ञाओं में जनभाषा प्राकृत का ही व्यवहार किया तथा जन-साधारण तक अपना संदेश पहुँचाने एवं जन-जागृति लाने के उद्देश्य से विभिन्न अभिलेख इसी भाषा में लिखवाये। प्राकृत भाषा जन-जीवन में इस कदर व्याप्त थी कि अश्वघोष, भास, कालिदास, शूद्रकादि संस्कृत के महान् कवियों ने इस भाषा को अपने नाटकों में भी स्थान दिया। प्राचीन काल से ही प्राकृत-साहित्य में जीवन के विविध पक्षों को उद्घाटित करने वाली भावनाएँ अभिव्यंजित होती रही हैं। जनसामान्य से लेकर राजमहलों तक के जीवन एवं व्यवहार के विभिन्न क्रियाकलापों को यह साहित्य अपने में समेटे हुए है। जन-साधारण के जीवन में आने वाली विविध समस्याओं एवं उनके समाधानों को जिस सूक्ष्मता से इस साहित्य में प्रस्तुत किया गया है वैसा विश्व में अन्यत्र किसी भी भाषा के साहित्य में अप्राप्य है। कथ्य रूप से प्राकृत साहित्य कितना पुराना है इसका प्रमाण आज हमारे पास नहीं है, लेकिन वैदिक रचनाओं में उपलब्ध इस भाषा के शब्द एवं उसकी व्याकरणात्मक प्रवृत्तियाँ प्राकृत भाषा के साहित्य की प्राचीनता की द्योतक हैं।

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