Book Title: Prakaranmala Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala Publisher: Bhogilal Tarachand Shah View full book textPage 9
________________ अन्नय तूरी कसं, मट्टा पाहाणजाइन ऐगा॥ सोवीरंजण खूणाश, पुढविनेआइ इच्चाई ॥४॥ शब्दार्थः-स्फटिक,मणि, रत्न, प्रवालां, हिंगलोक, हरताल, मणसिल, पारो, सोनादि सात धातु; खमी, रमजी, पाषाणनी साथे मलेली धोली माटी, पारेवो पाषाण, पांच वर्णनो अबरख, तेजंतुरी खारीमाटी, माटी, अनेक पाषाणनी जातियो, सुरमो अने सिंधव आदि, इत्यादि पृथ्वीकायना नेदो जाणवा. ॥४॥ हवे अप्कायना लेदो कहे . नोमंतरिकमुदगं, नसा दिम करग दरितणू महिआ। हुँति घणोदहिमाई, नेया णेगा य आनस्स ॥५॥ शब्दार्थः -पृथ्वीनुं पाणी, आकाशनुं पाणी, उसनुं पाणी, हिमनुं पाणी, करानुपाणी, लीला घास नपरनुं पाणो, धुवरनुपाणी अने घनोदधिनुं पाणी, इत्यादि अप्कायना अनेक नेदो होय . ५ हवे अग्निकाय जीवोना नेदो कहे . इंगालजालमुम्मुर, उक्कासणिकणगविज्जुमाईआ ॥ अगणिजिआणं नेत्रा, नायबा निनणबुडीए ॥६॥ . शब्दार्थः-अंगारानो अग्नि, जालनो अग्नि, नरसामनो अग्नि, स्कापातनो अग्नि, वज्रनो अग्नि, कणियानो अग्नि अने विजलीनो अग्नि, इत्यादि अग्निकाय (तेनकाय) जीवोना दो सूक्ष्म बुद्धिथी जाणवा. ॥६॥ . - हवे बायुकायना नेदो कहे जे. उनामगजकलिया, मंमलिमहसुघगुंजवाया य॥ घणतणुवायाईया, नेया खलु वानकायस्स ॥७॥ शब्दार्थः-उजामकवायु, नत्कलितवायु, मंझलिवायु, महावायु, शुद्धवायु, गुंजारव करतो वायु श्रने घनवायु तथा ..Page Navigation
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