Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah

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Page 10
________________ तनवायु विगेरे वायुकायना नेदो निश्चे जाणवा. ॥७॥ जाणवा. ॥७॥ साहारणपत्रेय हवं वनस्पति कायना साहारणपत्तेया, वणसजीवा उहा सुए जाणा ॥ जेसिमणंताणं तणु, एगा सादारणा तेक ॥७॥ शब्दार्थः-साधारण अने प्रत्येक एवा वनस्पतिकाय जीवोना बे दो सूत्रमा कह्या . तेमां जे अनंत जीवोनुं एक शरीर होय ते साधारण जाणवा. ॥ ७॥ . हवे साधारण वनस्पतिकायनां नाम कहे . कंदा अंकुरकिसलय, पणगा सेवाल नूमिफोमा य॥ अल्लतियगजरमो-ब वहुला थेग पल्लंका ॥ए॥ शब्दार्थः-सूरण विगेरे सर्व जातिनां कंद, अंकुरा, कुंपलो, पांचवर्णनी लोलफुल, सेवाल, बीलामोना टोप थने त्रण जातवें बाउ, गाजर, मोथ, वबुलो, थेक, पाकानी नाजी. ॥ ए॥ कोमलफलं च सवं, गूढसिरा सिणापत्ताइं॥ थोहरिकुंआरिगुग्गुलि-गलोयपमुहा य बिन्नरुहा १० शब्दार्थः-वली सर्व जातिनां कोमल फल, जेनो कणसलो, नसो, सांधो प्रगट न देखातो होय ते, शण विगेरेनां पांदमां, सर्व जातनो थोर, गुगल, गलो ए विगेरे जे द्यां बतां फरी नगे ते. १० श्चाइणो अणेगे, हवंति नेया अणंतकायाणं तेसिं परिजाणणबं, लकणमेयं सुए नणियं ॥१॥ शब्दार्थः-इत्यादि अनंतकाय जीवोनांअनेक नेदो होय. तेमने जाणवा माटे या नीचे लखेळु लक्षण सूत्रमा कयुं . ११ हवे अनंतकाय वनस्पति जीवोनुं लक्षण कहे जे. गूढसिरसंधिपवं, समनंगमहीरुगं च बिन्नरुहं ॥ सादारणं सरीरं, तविवरीयं च पत्तेयं ॥ १३॥

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