Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah
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(४) शब्दार्थः-जेनां कणसला, सांधा के गांव्यो न देखाती . होय, नागी नाखवाथी जेना सरखा बे नागथता होय, जे रेता विनाना होय, तथा जे दोने वावोए तो पण फरीने नगे ते साधारण वनस्पतिकायनां शरीर कहेवाय अने तेनाथी विपरीत लक्षणवाली वनस्पति होय ते प्रत्येक जाणवी. ॥ १५ ॥
.. हवे प्रत्येक वनस्पतिकायनुं लक्षण कहे ले. : एगशरीरे एगो, जीवो जेसिं तु ते य पत्तेया ॥ फलफूलबल्लिकहा, मूलगपत्ताणि बीयाणि ॥१३॥
शब्दार्थः-वली जेमनां एक शरीरने विषे ऐक जीव होय ते प्रत्येक जाणवा. ते प्रत्येक वनस्पतिकायना सात जेद जे. सर्व जातिनां फल, फुल, गल, लाकमां, मूल, पांदमां अने बीज ए सर्व प्रत्येक वनस्पतिकाय जाणवां. ॥ १३ ॥ • हवे पांच स्यावर समनुं वर्णन करे . पत्तेयतरु मुत्तं, पंचवि पुढवाश्णो सयललोए । सुतुमा हवंति नियमा, अंतमुहुत्तान अहिस्सा ॥२४॥
शब्दार्थः-प्रत्येक वनस्पतिकायनेमूकोने चौद राजलोकने विषे सूक्ष्म एवा पांचे पृथ्वी कायादि निश्चे अंतर्मुहूर्त्तनां आयुष्यवाला अने अदृश्य (चर्मचकुथो न देखो शकाय तेवा) होय .
हवे बे इंघिय जीवोना जेद कहे . . संखकवड्डय गंडुल-जलोयचंदणगअलसलदगाई॥ मेहरिकिमिपूअरगा, बेदिय माश्वादाई ॥१५॥
शब्दार्थः-शंख, कोमा, गंमोला, जलो, चंदनक (अरिया) अलसिया, लालीया, मेर, (लाकमाना कोमा) करमोया, पोरा अने चूमेल विगेरे प्रिय जीवो जाणवा. ॥ १५ ॥ .

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