Book Title: Prakarana Ratnakar Part 3
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. ततो सूत्रमा “ तस्सठाणस्स अणालोश्य" इत्यादिक पाठे केम कह्यु जे ते स्थानक ने अणालोए, अण पमिकमे काल करेतो विराधक थाय? इति तेनो उत्तर कहे जे. आलोअपy गण का जे ॥ तेद प्रमाद गतिरो। तीरंग ते जे जात्र विचाले ॥ रहे ते खेद घणेरोरे ॥ जितु ॥ १५ ॥ अर्थः-ते गणनुं बालोषण कयुंके ते स्थानक जे चैत्यवंदनामां प्रमाद स्थानक तेहनुं जे बालोववं, तेज देखाडे. ते प्रमाद गतिकेरोके० प्रमादे गति करी तेनुं बालोव ने जे कारणमाटे लब्धि नपजीवन ते प्रमाद गति. कोइ पूजे जे “ते ठाणन बालोषण कडे एहवो अन्वय क्याथी कस्यो ?” तेने कहीए बैए जे॥तस्स गणस्स आलोपालोश्य इत्यादिक सूत्रपाग्थकी एवो अन्वय कस्यो. इति तथा वली प्रमादस्थान बीजुं देखाडे. तीरंगतिके तीरना वेगनी पेरे उतावली गतिए जे चाल्या जाय, ते जाताथका जात्रविचालेके वचमांतीर्थयात्रा प्रमुख शाश्वतां देहेराप्रमुख रहेके० रही जाए. ते खेद घणेरोके० घणो खेद चित्तमा उपजेले. एटले तीरना वेगनी परे गयां ते आलोयणस्थानक कहीए. इति नाव. इति एकोनविंशतितम गाथार्थ ॥ १५ ॥ हवे बालावानो अर्थ. कशविहाणं के केटला प्रकारना हे नगवन्, चारण मुनि कह्याले ? प्रनुजी कहेडे हे गौतम, बे प्रकारना चारमुनि. तंजहा इत्यादिक ते कहेले. एक विद्याचारण बीजा जंघाचारण. सेकेण्डेणं के शाकारणथी विद्याचार ए? प्रचुजी कहेले. हे गोयम, बबन्ने अतिरिकत्ते एंके अविश्रामपणे एटले नि रंतर तप करतां विटाएके० विद्याए करी पूर्वगतश्रुत विशेषे करीने उत्तरगुण लहिं खममाणस्सके पिंम विशु क्षादिकनेविषे तप. तेहने खमता सहेता एटले तप करता. तिनावः विद्याचारपलब्धि उपजे जे. सेतेणणं के ते कारणे विद्याचार ए कहीए. हे स्वामिन्, विद्याचारणनी कहंसीहागश्के केवी शीघ्रगतिले? कहंसी हेगाविसएके शीघ्रगतिविषय केवो एटले गमनविना पण शीघ्रगति विषयुं के टर्बु खेत्र ? इति नावः प्रचुजी कहेले. हे गोतम, अयमके या जंबुदीप लाख योजननो यावत् ३१६२२७ योजन, ३ गान, १२७ धनुष्य १३ अंगुल जाफेरां. ए टली परिरकेवेणंके० परिधिले. महर्दिक यावत् महासुखनो धणी देवता; त्यां अब राणिवाएहिके त्रणचपटी वगाडीए एटली वारमा तिरकुत्तोके त्रणवार जंबुद्धी प फरी आवे. विद्याचारणनी एवी शीघ्रगतिजे. एवो शीघ्रगतिनो विषयले. ए सा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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