Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Haribhadrasuri, Shyamacharya
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust

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Page 48
________________ *आपुर्वन्चा श्रीप्रज्ञा श्रीहारि० ३ प्रज्ञा कायसबहुत्वं णोइंदियअणागारोवउचा य बावण्णमेचा व ति, ततश्च ओहसागारोवउचेहितो इंदियसागारोवओगेहिं वीसमेनेहिं अवणीएहिपि जया वावण्णमेत्ता णोइंदियअणागारोवउत्तगा य खिप्पंति तदा दो सया चउवीसुत्तरा भवंति, ते य तेहिंतो विसेसाहियत्ति, एवमन्याक्षिप्तेन चेतसा अन्यदपि तदुत्तरत्र गयं भावनीयमिति, असातावेदगा विसेसाहिया, जम्हा पायं साहारणादयो असातवेदणं वेदेति, असमोहया विसेसाहिया, समुग्घायकालस्स थोवत्तणओ, जागरा विसेसहिया, एगिदियापज्जत्तगेसुवि तेसिं भावातो, पज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमपजत्तगबहुतणओ, उक्तंच संग्रहणिकारेण-"जीवाणमपजचा बहुतरया बादराण विण्णेया। सुहुमाण उ पज्जत्ता ओहेण य केवलाविचि ॥१॥" आउस्स कम्मस्स बन्धगा विसेसाहिया, सकलजीवानामेव तद्वत्कालस्याल्पत्वादिति, इदानीं तं चेव अप्पबहुत्तं ठवणारासीहिं निदरिसिजति, तत्थ उवरिमपाडियाए आउस्स कम्मस्स बद्धया अपजचा सुत्ता समोहया सायावेयगा इंदिओवउत्ता अणागारोवउत्ता य उविज्जंति, तओ हिडिमपाडियाए यथासंख्यं तेष्वेव गृहकेषु अबन्धया पज्जत्ता जागरा असमोहता असातावेदा| अबंध पिज्जत्तय | जागरा | असमो० असाता० । णोइदिय | सागारोव० गोइंदियोवउत्ता सागारोवउत्ताय, २५५ | २५४ । २५२ । २४८ । २४० | २२४ । १९२ सा चेयं स्थापना, उवरिमपाडिया| बंधया | अपज्जचा | सुचा |समोहता | सातावेदा | इंदियोव० अणागारो संखेज्जगुणत्ति तेण आउयस्स- १ । २ । ४ । ८ धगाणं हेट्ठा पकोडाविओ, तओ जहण्णएणं हेष्वासंखेज्जएणं संखेज्जगुणत्ति सेसठाणेसु दुगुणा दो चचारि अट्ठ सोलस बत्तीस चउसठ्ठी य ठाविअव्वा, जीवकाओ बुद्धीए दो छप्पण्णा समागे ठाविज्जंति, ते हिडिमपाडियाए अबंधगादिसु पत्तेयं पत्तेयं ठावेऊण | १६ | ॥४२॥

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