Book Title: Pragna se Dharm ki Samiksha Part 02 Author(s): Amarmuni Publisher: Veerayatan View full book textPage 7
________________ पुरोवाक् प्रजामहर्षि राष्ट्रसंत पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री अमरमुनिजी महाराज के ज्ञानमन्त्र - “ मनोपलापनयनार्थं, प्रातः सायं निरन्तरम् । स्वाध्यायामृतगंगायां, स्नातव्यं सर्वबन्धुभिः ॥ " के साथ नियमित रूप से स्वाध्याय किया है, जिससे प्राचीनकाल के तथा वर्तमानकालीन महामनीषियों का उनकी विशिष्टतम रचनाओं के माध्यम से साक्षात्कार हुआ है। और, मैंने पाया कि अमरमुनि बस अमरमुनि हैं। वे साक्षात् ज्ञान के पुञ्ज हैं। उनकी प्रखर तेजस्वी प्रज्ञारश्मियों से जीवन का कोई पहलू अछूता नहीं रहा। उनकी ऋतम्भरा प्रज्ञा में सत्य ही केवल उजागर हुआ है। उस पर कभी भी रूढ़-परम्परा सम्प्रदाय, दुराग्रह या सामाजिक भय के बादलों को मण्डराते हुए नहीं देखा गया। उनकी प्रज्ञा किसी प्रकार के मल से धूमिल या आच्छादित नहीं हुई। अतः पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक विषयों की तरह ही शास्त्रीय विषयों का भी सत्याभिमुख निरावृत्त लेखन उनकी विशेषताओं का निखार है। जिज्ञासु मुमुक्षुओं के आग्रह से " प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा" इस नाम से पुनः प्रकाशित हो रहा है। हार्दिक प्रसन्नता है। पूज्य गुरुदेव की प्रस्तुत पुस्तक निश्चित रूप से ज्ञान के परिष्कार एवं परिशोधन के लिए उपयोगी सिद्ध होगी । संघ स्थापना दिवस 15/05/2009 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International आचार्य चन्दना वीरायतन, राजगीर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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