Book Title: Praching Poojan Sangrah Author(s): Ram Chandra Jain Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat View full book textPage 8
________________ ॥ ब्रह्म ज्ञान सागर ॥ ईडर को काष्टा बनछो गद्दी के न श्री भूपए के शिष्य वथा भर चंद्रकोर्स के साथ प्र. ज्ञान सागर थे। इनका समय विक्रम संवत १६६० के पास पास का है। ये संस्कृत हिन्दी तथा प्राकृत भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। इनके बनाये हुवे पूजाए' ब्र कथाए' उद्यापन पुराण तथा स्तनादि उपहब्ध है। दशलक्षण और सोलह कारणः की संस्कृत पूजाओं की रचन कापने हरे को है आपके भाषा के सबैये भी प्रकाशित हो चुके हैं जो कि प्रसिद्ध हा है। ॥१० भट्टारक इन्द मूषण ।। आपका समय विक्रम संवत १७.८ के आस पास का है आप इंदर की काष्ठासंघी गहरी के भ० लक्ष्मीसेन के शिष्य थे आपने भी कई प्रतिष्ठाए करवाई हैं। भापके शिष्य भ० सुरेन्द्रकीर्ति जो कि अच्छे विद्वान और उस समय के सिद्ध भट्टारक थे ऋषभदेव (केशरियाजी) में आधकांश प्रतिमाओं को प्रतिष्ठा अपने ही कराई है। थापके शिष्य कृत्रि गोविन्द थे जोकि अच्छे दिन थे इन्होंने भी पद्मावती पूजा आदि कई पूजामों की रचना की है। ।Page Navigation
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