Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 6
________________ में जस अनुमाता का अबुल का में इस यमाला का पटुत अधित उपयोग होता है, इसका खास कारण इसकी पांडित्व पूर्ण भाषा एई सरल राग है। ॥ ३ भट्टारक राजकीति ॥ - श्राप ईडर की काष्ठासंघो गाड़ी के भट्टारक थे आपका समय विक्रम स. १६८१ से १६६७ तक का है इनके गुरु मा चन्द्रकीर्ति थे जिन्होंने संस्कृत में कई अथ लिखे है आपके शिव भ. लक्ष्मी सेन थे। भ. राजकीर्ति बहुत अल्प समय में ही स्वर्गशनी हो गये थे अतः ये विशेष कुछ भी नहीं कर पाये थे । भापकी कृति देवशास्त्र गुरम इस समय है । - ॥ ४ भट्टारक उदयसेन ॥ श्राप भी काष्ठा संघो नरसिंहपुरा समाज को सूरत की गहरी के भट्टारक थे आपका सनय विक्रम संवत १५१. १६१५ तक का है आप भ० यशक ति के शिष्य थे जिन्होंने कि प्रवास तथा ऋषभदेव । केशरियाजी) में प्रतिष्ठाए की थीं । आप भ। संस्कृत भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। आपने भी कई प्रतिष्ठाए की थी आपके शिष्य म. त्रिभुवन कोलि थे। इस संग्रह में भापकी शास्त्र पूजा प्रकाशित हुई है। ५ कवि जीवनलाल ॥ कवि जीवनलाल के पिता का नाम वासुदेव था, जेमा कि आपने स्वयं गुरु जयमाला में लिखा है श्री वासुदेव तनयो कवि जीवनोऽ, आपका समय विक्रम सं० १७७५ से १८०० तक का है आप के जीवन चरित्र का निश्चित हाल मालुम नहीं हो सका है फिरभी इतना अवश्य कहा जा सकता है कि भाप गुजरात् प्रान्त के निवासी थे श्रापको जाति व्यास (बारोठ) है। भाएकी गुरु अयमाला मलावा बोर कोई कृति प्राप्त नहीं है।

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