Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 14
________________ में प्रतापगढ़ में विशाल छात्रालय की स्थापना की है। छात्रालय की आधारशि अनेक पद विभूषित श्रीमंत सर सेठ हुकमचन्दजा साने र ख थी वि.सं. २०१६ में बड़े भारी समारोह पूर्वक श्री सीमधर जिना लय को प्रतिष्ठा कराई थी। इसी प्रकार बालकासि वावगड और बांसवाड़ा में भी छात्रालय स्थापित कराये एवं अनेक पाटश लाए' स्थापन कराई । आपने सारे भारत वर्ष के जैन तिर्थो की कई बार त्राएं की है। कुछ वो नक तो प्रति वर्ष तीर्थराज सम्मेद शिखरजी की यात्रा करते थे अपना सारी सम्पत्ती को सस्थाओं में देदी है। ऋषभदेव का म० यशकीर्ति भवन भी दृस्ट ढोड कर समाज को सौंप दिया है। भवन के साथ १००००) र नकद एवं गहरी का लवाजमा उपकरण शास्त्र बरनि फर्निचर आदि सब माज को सौंप पर अपना अधिकार हटालिया है। ज्यों ज्यों श्राप सम्पति से मोह इटाते. जाते हैं समाज श्रापको अधिक भेंट देने लगी है अब भी जो कुछ भेंट आता है सघ सस्थाओं को देदी जाती है। प्राप के पदेशों से लाखों लोगों ने आत्म कल्याण का मार्ग अपनाया है सारी दिगम्बर ममाज में भाप के राम के अनुरुप पशकीर्ति का विस्तार हुमा है। पूज्यवाद भानार्थी शांतिसागर जी महाराज की समक्षता में और अन्य प्रसंगो पर अनेक उपाधिया। वं अभिनन्दन पत्र समर्पित किये हैं। आपके ३ सुयोग्य शिष्य १ श्री पं. रामचन्द्रजी २ पं. किशनलालजी ३ पं. दाइमचंदजी हैं। पं. रामचन्द्रजी शिक्षण संस्थाओं की देखभाल करते हैं। पं. गइमचंन्दी परेश के साथ २ यत्र मंत्र और ज्योतिष के भी जानवर हैं। और संगीत कला में तो बड़े की निपुण आपकी संगीत कला पर मुग्ध होकर आपको " संगीत शिरोमणी " की उपाधो प्रदान की गई है। पं. किशनलालजी महाराज श्री की सेवामें रहते है वे भो पूजन पाट एवं संगीत पालिके जानकार है। वर्तमान समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए महारान भी ने नया शिष्य बनाने का विचार छोड़ दिया और भट्टारक नही की स्मृति हमेशा स्थायी रखने के लिये सम्पत्ति का ट्रस्ट दीड कर दिया है।

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