Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 11
________________ * भट्टारक क्षेमकीर्ति * ॥१४॥ भ० तेमकं किंजी को ५ वर्ष की उम्र में वि.सं. १९१० में भ. हेमचन्द्रजी ने शिष्य बनाये थे। आप जयपुर के निवासी खंडेलवाल जाति के पांड्या गोत्री थे श्रापका बचपन का नाम गिरधारीलाल था। विक्रम सं० १९२३ में नरोडा में सुरत निवासी श्रीमान् सेठ सोभागचन्द मेघराज ने बड़ा भारी उत्सव कर बड़े समारोहपूर्वक भ. हेमचन्द्र के पट्टपर स्थापित किये थे। आपने अपनी सच्चरित्रता के कारण सारी समाज में अच्छी ख्याति प्राप्त की थी। श्रापको वाणी में कुछ ऐसी सिद्धी थी कि आपने कह दिया यह अमिर होता था। इस प्रकार अपने शुभाशिवदों से सैंकड़ों लोगों का उपकार किया था। अनेकों बार तीर्थ यात्रार की और अनेक मंदिरों की प्रतिष्ठाए' कराई थी। उन दिनों १६३५ में केशरियाजी क्षेत्र में श्वेताम्बर समाज की ओर से ध्वजादरड कलश चढ़ाने के प्रयत्न किये जाने लगे थे। इस बात की जानकारी मिलते ही आपने इसका विरोध किया और इसके लिये भ. गुणचन्द्र, भ० कनक कीर्ति, मा धर्मकोति, भ. राजेन्द्र कति को सहल बल श्रामत्रित किये । सभी भट्टारक अपने शिष्यों व चपरासी आदि २०० व्यक्तियों को लेकर आये। उधर श्वेताम्बर साधु भी बड़ी संख्या में एकत्रित हुए थे। बाजार में ही भट्टारकों व श्वेताम्बर साधुओं के आपस में विसंबाद हो गया, विवाद बढ़ते बढ़ते मारामारी तक नौबत आगई। अंत में सब भट्टरक अपने शिष्यों सहित मदिर के समक्ष पंक्ति बद्ध खड़े हो गये और श्वेताम्बर को मदिर में जाने से रोक दिये और वजादण्ड कलश नही चढ़ाने दिये। आपने अनेकों स्थानों पर नरसिंहपुरा समाध के जगहों की मध्यस्थता कर उनको मिटाया । विसं. 1॥१४॥

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