Book Title: Praching Poojan Sangrah
Author(s): Ram Chandra Jain
Publisher: Samast Digambar Jain Narsinhpura Samaj Gujarat

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Page 3
________________ ॥१॥ प्रस्तावना . देवाधि देव चरसे, परिचरणं सर्व दुःख निर्हरणम् । काम दुहि काम दाहिनी, परिचिनुया दाहतो नित्यम् ॥ तिनेन्द्र भगवान की पूजन करना प्रत्येक धक का दैनिक कर्तव्य है। न समाज को यह बनाने की प्रावश्यता ! "नहीं है कि जिनेन्द्र पूजा का क्या महल्य है। पूजन के द्वारा परिणामों की निर्मलता बढ़ती है एवं पाप दूर होते हैं । श्रावक के षटकर्म "देव पूजा गुरुपास्ति" में भी देव पूजा को प्रथम स्थान दिया गया है, अतः जिनेन्द्र भगवान पूजन करना प्रत्येक श्रात्रक का प्रधान दैनिक कर्तव्य है। पूजन करने का प्रमुख साधन पूजन की पुस्तके ही हैं। जैन समाज में पूजन की पुस्तकों की कमी नहीं है । परन्तु प्रस्तुत सग्रह का प्रकाशन कुछ विशेष कारणों को लेकर ही किया गया है। गुजरात प्रान्त में विशेष वर नरनिरा गद्दी के विद्वान भट्टारकों द्वारा रचित प्राचीन संस्कृत तध! प्राकृत भाषा की पूजाएँ पढ़ाने की परिपाटी है परन्तु अब तक इन पूजामों का प्रकाशन नहीं हुअा था।

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